For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ५८

1212 1212 1212 1212

दिलों की आग बुझ गई, जिगर में अब धुआँ नहीं
कि तुम भी अब जवाँ नहीं, कि हम भी अब जवाँ नहीं

सितारे गुम हुए सभी, रुपहली कहकशाँ नहीं
ज़मीने दिल पे अब तेरी वफ़ा का आसमाँ नहीं

सफ़र भी ज़िंदगानी का हुआ कभी अयाँ नहीं
जहाँ पे रहगुज़र मिली वहाँ पे कारवाँ नहीं

वो मुझसे बोलता नहीं, वो मुझसे सरगिराँ नहीं
वफ़ा की आग क्या लगे, जहाँ उठे धुआँ नहीं

यूँ मह्वे आशिक़ी हुआ, ख़्याले जिस्मोजाँ नहीं
मेरी वफ़ा के सामने फ़लक़ भी बेकराँ नहीं

ये खल्क़ तो बहिश्त की नज़ीरे गुलसिताँ नहीं
कोई है घर पे मुंफ़रिद, किसी को आशियाँ नहीं

तफर्क़ा ए ख़्याल का है मुद्दआ कहाँ नहीं
इसीलिए तो आपसे हुए हैं बदगुमाँ नहीं

हवास की ख़िरद कभी रही है पासबाँ नहीं
कहो कि कब ज़मीर ने लिया है इम्तिहाँ नहीं

मैं रहगुज़र का हूँ मकीं मेरा कोई मकाँ नहीं
तलाशे ख़ुद के वास्ते फ़िरा कहाँ कहाँ नहीं

हुईं न ख़त्म हसरतें अगरचे अब जवाँ नहीं
है तीर अब भी हाथ में, मगर वो अब कमाँ नहीं

हमारे घर वो रौनके बहारे गुलसिताँ नहीं
तू जब से मेरे क़ुर्ब का हुआ है मेहमाँ नहीं

है सच कि मैं कभी गया किसी के आस्ताँ नहीं
ख़ुदी को फ़त्ह जो करे मिला वो हुक्मराँ नहीं

है कैफ़ियत मिजाज़ की ख़मोशियाँ हैं ओढ़ ली
मगर हैं नातवाँ नहीं, हुए हैं बेज़ुबाँ नहीं

सँभाल कर रखा करें मता ए हुस्न राज़ से
लगा दें आग वो कि यूँ ज़रा सा हो धुआँ नहीं

~राज़ नवादवी

"मौलिक एवं अप्रकाशित" 

Views: 798

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राज़ नवादवी on July 2, 2018 at 4:13pm

आदरणीय जनाब मुहम्मद आरिफ़ साहब, आदाब. ग़ज़ल में आपकी शिरकत एवं हौसला अफज़ाई का दिल से शुक्रिया. जनाब समर कबीर साहब की इस्लाह पे अमल किया जाएगा. सादर 

Comment by राज़ नवादवी on July 2, 2018 at 4:10pm

आदरणीय ब्रिजेश कुमार ब्रज जी, आपकी ग़ज़ल में शिरकर एवं सुखन नवाज़ी का ह्रदय से आभार. सादर. 

Comment by राज़ नवादवी on July 2, 2018 at 4:09pm

आदरणीय समर कबीर साहब, आपकी इस्लाह का ह्रदय से आभार. सुझाए गए बदलाव पे अमल करूंगा. सफ़र-ए-जिंदगानी जैसी इज़ाफ़त मैंने कहीं देखी है, या शायद मैं ग़लत भी होऊं. अगर मिसाल मिली तो ज़रूर साझा करूंगा. ग़ज़ल में शिरकत और हौसला अफजाई का दिल से शुक्रिया. सादर. 

Comment by Mohammed Arif on July 2, 2018 at 2:09pm

आदरणीय राज़ नवादवी जी आदाब,

                        शे'र दर शे'र दाद के साथ दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें । आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब की इस्लाह का संज्ञान लें ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 2, 2018 at 12:49pm

वाह आदरणीय राज साहब...एक अलग ही अंदाज की ग़ज़ल पढ़ने को मिली..शुक्रिया इस ग़ज़ल के लिए

Comment by Samar kabeer on July 2, 2018 at 12:10pm

जनाब राज़ नवादवी साहिब आदाब,बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

हुस्न-ए-मतला में 'सितारे गुम गये' को "सितारे गुम हुए" करना उचित होगा क्या?

'सफ़र-ए-ज़िन्दगानी भी हुई कभी अयाँ नहीं'

इस मिसरे में 'सफ़र' शब्द में इज़ाफ़त मुझे खटक रही है,उर्दू शाइरी में अगर ऐसी कोई मिसाल हो तो बराह-ए-करम साझा करें,दूसरी बात ये कि "सफ़र" शब्द पुल्लिंग है, इस दृष्टि से इस पर थोड़ा ग़ौर करें ।

'ख़ुदी को जो फ़तह करे मिला वो हुक्मरां नहीं'

इस मिसरे में 'फ़तह' शब्द का वज़्न आपने 21 लिया है,जबकि सहीह शब्द है "फ़त्ह" और इसका वज़्न 21 है, मिसरा यूँ कर सकते हैं:-

'ख़ुदी को फ़त्ह जो करे मिला वो हुक्मरां नहीं'

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
22 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
Tuesday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service