(फाइलातुन _फाइलातुन _फाइलातुन _फाइलुन)
याद है तेरी इनायत, ज़ुल्म ढाना याद है |
जानेमन मुझको मुहब्बत का ज़माना याद है |
हम जहाँ छुप छुप के मिलते थे कभी जाने जहाँ
आज भी वो रास्ता और वो ठिकाना याद है |
भूल बैठे हैं सितम के आप ही क़िस्से मगर
दर्द, ग़म,आँसू का मुझको हर फ़साना याद है|
इस लिए दौरे परेशानी से घबराता नहीं
मुश्किलों में उनका मुझको मुस्कुराना याद है |
घर के बाहर यक बयक सुन कर मेरी आवाज़ को
बिन दुपट्टा तेरा दरवाज़े पे आना याद है |
जान से अपनी गया पा कर इशारा जो तेरा
क्या तुझे अपना सितम गर वो दिवाना याद है|
हुक्म से किस के गिरी तस्दीक बिजली क्या पता
हम को जलता सिर्फ अपना आशियाना याद है |
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
जनाब सुशील सरना साहिब, ग़ज़ल पर आपकी सुंदर प्रतिक्रिया और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया |
हुक्म से किस के गिरी तस्दीक बिजली क्या पता
हम को जलता सिर्फ अपना आशियाना याद है | .... वाह क्या अशआर लिखे हैं आदरणीय। इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
जनाब भाई लक्ष्मण धामी साहिब , ग़ज़ल में आपकी शिर्कत और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया |
आ. भाई तस्दीक जी, बेहतरीन गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।
मुह तरमा नीलम साहिबा , गज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ।
मुह्तरम जनाब समर साहिब आदाब , ग़ज़ल में आपकी शिर्कत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ।
आदरणीय तसदीक़ अहमद जी, अच्छी गजल हुई है । मुबारकबाद कुबूल करें ।
जनाब तस्दीक़ अहमद साहिब आदाब,'हसरत मोहानी' की ज़मीन में अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
जनाब श्याम नारायण साहिब, ग़ज़ल मेंआपकी शिर्कत और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया |
बेहद उम्दा ...बहुत बहुत बधाई आप को आदरणीय | सादर |
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