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वो शख्स क्यूँ मुस्कुरा रहा था ।
जो मुद्दतों से ख़फ़ा रहा था ।।
वो चुपके चुपके नये हुनर से ।
सही निशाना लगा रहा था ।।
अदाएँ क़ातिल निगाह पैनी।
जो तीर दिल पर चला रहा था ।।
तबाह करने को मेरी हस्ती ।
कोई इरादा बना रहा था ।।
मुग़ालता है उसे यकीनन ।
नया फ़साना सुना रहा था ।।
बदलते चेहरे का रंग कुछ तो ।
तुम्हारा मक़सद बता रहा था ।।
ज़माना गुज़रा है उसको देखे।
जो ख्वाब अब तक सता रहा था ।।
बला की सूरत सियाह जुल्फें ।
वो रुख से पर्दा हटा रहा था ।।
बिखेर कर लब पे यूँ तबस्सुम ।
तमाम ग़म तू छुपा रहा था ।।
हवा की ख़ुशबू बता रही थी ।
कोई पदुपट्टा उड़ा रहा था ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
Comment
आ0 ब्रजेश कुमार ब्रज साहब तहे दिल से शुक्रियः
अच्छी ग़ज़ल कही आदरणीय त्रिपाठी जी...
आ0 श्याम नारायण वर्मा साहब हार्दिक आभार ।
आ0 सुशील शरण साहब हार्दिक आभार
आ0 कबीर सर सादर नमन के साथ तहे दिल से शुक्रियः ।
हवा की ख़ुशबू बता रही थी ।
कोई पदुपट्टा उड़ा रहा था ।।.... वाह वाह वाह बेहतरीन अशआर ... इस जानदार,दमदार ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई सर.
बहुत खूब ! इस सुंदर गजल हेतु बधाई स्वीकारें । |
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
आदरणीय
लक्ष्मण धामी साहब
आ0 राम अवध विश्वकर्मा साहब
आ0 गुमनाम पिथौरा गढ़ी साहब
ग़ज़ल तक आने के लिए हार्दिक आभार और शुक्रियः ।
वाह अच्छा है,,,, बहुत खूब
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