समय बड़ा बलवान - लघुकथा –
माँ मरणासन्न स्थिति में चारपाई पर पड़ी थी। संजीव चारपाई के पास बैठा आँसू बहा रहा था।
"क्यों रोये जा रहा है पगले? जाना तो सभी को एक दिन पड़ता ही है"।
"माँ, मैं इसलिये नहीं रो रहा हूँ। मेरे रोने की वज़ह कुछ और है"?
"अरे सब भूल जा अब। मेरा आखिरी वक्त है, खुशी खुशी विदा कर दे”|
"नहीं माँ, मैं जीवन भर सुशीला को माफ़ नहीं कर सकूंगा"?
"ओह, तो तू अपनी घरवाली सुशीला से नाराज है क्योंकि वह तेरे साथ मुझे देखने नहीं आई"?
"माँ, तू बहुत भोली है। इस सुशीला के कारण ही मैं तेरी आखिरी ख्वाहिश भी पूरी नहीं कर सका"?
"कौनसी ख्वाहिश की बात कर रहा है"?
"तू अपने पोते का मुँह देखना चाहती थी ना"?
"अरे हाँ, मैं तो भूल ही गयी। कोई बात नहीं। देर सबेर हो ही जायेगा। जब ऊपर वाला चाहेगा। इसमें सुशीला का क्या दोष"?
"माँ सारा दोष उसी का है। जब तुमने कहा था कि जैसे ही हमारा बच्चा होगा, तुम उसकी देखभाल के लिये हमारे पास आकर रहोगी"।
"हाँ यह तो कहा था मैंने"?
"मगर सुशीला नहीं चाहती थी कि तुम हमारे साथ रहो अतः उसने चोरी छिपे तीन बार बच्चा गिरवा दिया"।
"चल छोड़ बेटा, नादान है वह। माफ़ कर दे। ईश्वर और देगा"?
"नहीं माँ, अब सुशीला कभी माँ नहीं बन पायेगी”?
“शुभ शुभ बोल बेटा, ऐसे नहीं बोलते”?
“माँ, डाक्टर ने बताया कि तीन बार गर्भपात कराने से उसका गर्भाशय अब गर्भ धारण करने की क्षमता खो चुका है"।
“अरे बेटा, दूसरे डाक्टर को दिखालो। मेरा मन कहता है कि सब ठीक होगा"।
"माँ, जो लोग वक्त की कीमत नहीं समझते। वक्त उनको भी मूल्यहीन कर देता है"।
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप जी।
हार्दिक आभार आदरणीय मोहन बेगोवाल जी।
आदरणीय तेजवीर सिंह जी, नमस्कार। बहुत ही बढ़िया लघुकथा। प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
जनाब तेजवीर सिंह जी आदाब,अच्छी लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आद0 तेजवीर जी सादर अभिवादन। बेहतरीन पंच लाइन
"माँ, जो लोग वक्त की कीमत नहीं समझते। वक्त उनको भी मूल्यहीन कर देता है"।
वाह,, सीख देती बहुत उम्दा लघुकथा लिखी आपने। बधाई स्वीकार कीजिये
आदरनीय तेजवीर जी,बहुत सुंदर लघुकथा पर बधाई कुबूल करें ।
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