For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

निकम्मा - लघुकथा –

निकम्मा - लघुकथा –

 धर्मचंद जी शिक्षा विभाग से रिटायर अधीक्षक थे। चार बेटे थे। सभी पढ़े लिखे थे। सबसे बड़ा डाक्टर था जो अमेरिका में बस गया था। दूसरा इंजीनियर आस्ट्रेलिया में था। तीसरा दिल्ली में प्रोफ़ेसर था। चौथा बेटा भी पूर्ण रूप से शिक्षित था। जॉब भी मिल रहे थे मगर दूसरे शहरों में। लेकिन वह माँ बापू को अकेले छोड़ने के पक्ष में नहीं था।अतः वह इसी प्रयास में था कि उसे अपने ही शहर में नौकरी मिले।लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अंततः उसने पिता की सलाह पर मकान के बाहरी हिस्से में एक मेडीकल स्टोर खोल लिया।

अचानक धर्मचंद जी को दिल का दौरा पड़ा। सारे भाई एकत्र हुए।

बड़े तीनों भाइयों ने सलाह मशविरा कर  माँ के आगे प्रस्ताव रखा कि बापू के जीते जी इस इतने बड़े मकान का बंटवारा कर सबको अपना अपना हिस्सा दे दो । जो बेचना चाहे बेच दे ।

"यह मकान अभी नहीं बिक सकता। इसे बैंक में गिरवी रखा हुआ है"।

माँ का उत्तर सुनकर सबके माथे पर बल पड़ गये।

"ऐसी क्या मजबूरी आगयी कि मकान गिरवी रख दिया।हम लोगों को बताया भी नहीं"?

"तुम लोगों को पढ़ा लिखाकर बड़ा आदमी बनाया। क्या छोटे के प्रति हमारी कोई जिम्मेवारी नहीं है।उसके मैडीकल स्टोर के लिये लोन लिया था"?

"उसे भी तो पढ़ाया लिखाया था। अब वह कुछ करना ही नहीं चाहता तो कोई क्या करे"?

"उसने जो किया तुम तीन जन्म में भी नहीं कर सकते"?

"माँ, उस निक्कमे की किस उपलब्धि की बात कर रही हो"?

"आज हम दोनों उसकी सेवा और देखभाल के कारण ही जीवित हैं। माँ बाप की सेवा से बड़ी कोई उपल्ब्धि नहीं होती"।

मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 825

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by TEJ VEER SINGH on July 14, 2018 at 12:09pm

हार्दिक आभार आदरणीय  बृजेश कुमार 'ब्रज'जी।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 13, 2018 at 5:49pm

वाह आदरणीय बहुत ही ग़ज़ब की लघु कथा है वाकई..पढ़ते हुए बहुत अच्छा लगा..

Comment by TEJ VEER SINGH on July 13, 2018 at 11:57am

हार्दिक आभार आदरणीय राजेश कुमारी जी।

Comment by TEJ VEER SINGH on July 13, 2018 at 11:57am

हार्दिक आभार आदरणीय विजय निकोरे जी।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 12, 2018 at 7:41pm

सच में दिल छू गई लघु कथा आद० तेजवीर सिंह जी ..बेहतरीन 

Comment by vijay nikore on July 12, 2018 at 1:06pm

इतनी अच्छी लघु कथा पढ़ कर आनन्द आ गया। दिल से मुबारक भाई तेज वीर सिंह जी।

Comment by TEJ VEER SINGH on July 12, 2018 at 10:30am

हार्दिक आभार आदरणीय समर क़बीर साहब जी। आदाब।आपकी प्रतिक्रिया का बड़ी बेसब्री से इंतज़ार रहता है।

Comment by Samar kabeer on July 11, 2018 at 2:43pm

जनाब तेजवीर सिंह जी आदाब,बहुत उम्दा लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by TEJ VEER SINGH on July 10, 2018 at 8:08pm

हार्दिक आभार आदरणीय बबिता गुप्ता जी।

Comment by babitagupta on July 10, 2018 at 6:21pm

बेहतरीन रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजियेगा आदरणीय सरजी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
Tuesday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service