निकम्मा - लघुकथा –
धर्मचंद जी शिक्षा विभाग से रिटायर अधीक्षक थे। चार बेटे थे। सभी पढ़े लिखे थे। सबसे बड़ा डाक्टर था जो अमेरिका में बस गया था। दूसरा इंजीनियर आस्ट्रेलिया में था। तीसरा दिल्ली में प्रोफ़ेसर था। चौथा बेटा भी पूर्ण रूप से शिक्षित था। जॉब भी मिल रहे थे मगर दूसरे शहरों में। लेकिन वह माँ बापू को अकेले छोड़ने के पक्ष में नहीं था।अतः वह इसी प्रयास में था कि उसे अपने ही शहर में नौकरी मिले।लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अंततः उसने पिता की सलाह पर मकान के बाहरी हिस्से में एक मेडीकल स्टोर खोल लिया।
अचानक धर्मचंद जी को दिल का दौरा पड़ा। सारे भाई एकत्र हुए।
बड़े तीनों भाइयों ने सलाह मशविरा कर माँ के आगे प्रस्ताव रखा कि बापू के जीते जी इस इतने बड़े मकान का बंटवारा कर सबको अपना अपना हिस्सा दे दो । जो बेचना चाहे बेच दे ।
"यह मकान अभी नहीं बिक सकता। इसे बैंक में गिरवी रखा हुआ है"।
माँ का उत्तर सुनकर सबके माथे पर बल पड़ गये।
"ऐसी क्या मजबूरी आगयी कि मकान गिरवी रख दिया।हम लोगों को बताया भी नहीं"?
"तुम लोगों को पढ़ा लिखाकर बड़ा आदमी बनाया। क्या छोटे के प्रति हमारी कोई जिम्मेवारी नहीं है।उसके मैडीकल स्टोर के लिये लोन लिया था"?
"उसे भी तो पढ़ाया लिखाया था। अब वह कुछ करना ही नहीं चाहता तो कोई क्या करे"?
"उसने जो किया तुम तीन जन्म में भी नहीं कर सकते"?
"माँ, उस निक्कमे की किस उपलब्धि की बात कर रही हो"?
"आज हम दोनों उसकी सेवा और देखभाल के कारण ही जीवित हैं। माँ बाप की सेवा से बड़ी कोई उपल्ब्धि नहीं होती"।
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज'जी।
वाह आदरणीय बहुत ही ग़ज़ब की लघु कथा है वाकई..पढ़ते हुए बहुत अच्छा लगा..
हार्दिक आभार आदरणीय राजेश कुमारी जी।
हार्दिक आभार आदरणीय विजय निकोरे जी।
सच में दिल छू गई लघु कथा आद० तेजवीर सिंह जी ..बेहतरीन
इतनी अच्छी लघु कथा पढ़ कर आनन्द आ गया। दिल से मुबारक भाई तेज वीर सिंह जी।
हार्दिक आभार आदरणीय समर क़बीर साहब जी। आदाब।आपकी प्रतिक्रिया का बड़ी बेसब्री से इंतज़ार रहता है।
जनाब तेजवीर सिंह जी आदाब,बहुत उम्दा लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
हार्दिक आभार आदरणीय बबिता गुप्ता जी।
बेहतरीन रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजियेगा आदरणीय सरजी।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online