For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दर्द फिर उठा है। दर्द बहुत तेज़ है। कहते हैं, दर्द का हद से गुज़र जाना दवा है। ऐ दर्द गुज़र जा आज अपनी हदों से तू। ज़रा मैं भी तो देखूँ तेरा दवा हो जाना।

दर्द सचमुच बड़ा बेदर्द है। वह सचमुच बढ़ता जाता है; अपनी हदों को पार करता हुआ। अब नही, अब नही.......। अब बर्दाश्त नही होता। लेकिन दर्द तो बेदर्द है। बढ़ता ही जा रहा है; बर्दाश्त की हदों को पार करता हुआ। अब लगता है, जैसे सिमट आया है एक ही जगह।

दिल!

आह, दर्द-ए-दिल। सिमट आता है एक ही मुकाम पर। लगता है जैसे दिल किसी शिकंजे में कसा जाता है। दम है कि घुटा जा रहा है। सांस लेना भी दुश्वार है अब तो। बोझल होती सांसें। बोझिल होती आंखे। बोझिल होती आंखों के सामने एक क़यामत बरपा हो जैसे। कुछ धुंधले धुंधले से नज़ारे तेज़ी से गुजरते जा रहे है। कुछ रौशनियाँ कुछ अंधेरे। बदहवास लोग बदहवास आवाज़ें। स्ट्रेचर के चक्कों की चें चें। जल्दी करो, जल्दी करो ! ई सी जी !! मॉनिटर !!! जल्दी करो, जल्दी करो ! इंजेक्शन लाओ। मेडिसिन लाओ। क्विक ! क्विक !!

आवाज़ें सिमट रही हैं, नज़ारे सिमट रहे हैं। सभी रंग, रौशनियाँ, धब्बे, धुंधले धुंधले। दर्द सिमटता जा रहा है। अहसास सिमटते जा रहे हैं। आंखे बंद। क्या यही मौत है? क्या यही निजात है? क्या यही दवा है? कुछ मत सोचो सो जाओ। कुछ मत सोचो सो जाओ। कितना सुकून है... कितना सुकून.......

धीरे धीरे खुलती पलकें... कितनी हल्की हैं? आह, रौशनी.... कितनी मुलायम है।

क्या मैं जन्नत में हूँ? जहन्नुम में इतना सुकून कहाँ?

"अब कैसा लग रहा है?" कितनी मीठी आवाज़ है। जैसे कानो में कोई शहद घोल रहा है। जैसे दूर कहीं कोई साज़ बज रहा हो। क्या ये किसी हूर की आवाज़ है। पलकें उठती हैं। हूर कैसी होती हैं? अरे ! इस हूर ने सफेद लिबास क्यों पहन रखा है। इसका चेहरा भी कितना मामूली सा है। ये तो धोखा है। हूर को तो गैर मामूली होना चाहिए......

"तुम ठीक हो, कुछ नही हुआ तुम्हे। बस, डिप्रेशन है।" यार ये तो हॉस्पिटल का बिस्तर है। फिर पूछताछ, "कोई स्ट्रेस है? कोई परेशानी? क्या हुआ था? क्या हुआ है?......" लम्बी पूछताछ जैसे कोई पुलिस स्टेशन हो।

"ठीक है। अब तुम ठीक हो।  घर जा सकते हो। ये बिल जमा कर दो।"

बिल।

हॉस्पिटल का बिल। मैं हाथ मे लेकर बिल देखता हूं।

दिल बैठने लगा है। सांसे डूबने लगी हैं। आह ! दर्द.....

ऐ दर्द इस बार तो अपनी सच्चाई दिखा । ऐ मौत ! इस बार तो अपनी वफादारी दिखा। वरना हॉस्पिटल का ये बिल मुझे जीने नही देगा।

(मौलिक एवम अप्रकाशित)

Views: 620

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 15, 2018 at 3:18am

बेहतरीन भावपूर्ण, यथार्थपूर्ण सृजन। आपकी अपनी विशिष्ट शैली। हार्दिक बधाई मुहतरम जनाब मिर्ज़ा ह़ाफ़िज़ बेग  साहिब।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 29, 2018 at 2:07pm

बहुत बढ़िया मिर्ज़ा साहब...बड़ी ही सार्थकता से आपने अपनी बात कही है लघुकथा में..बधाई

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 26, 2018 at 4:27pm

आदरणीय  मिर्ज़ा हफ़ीज़ बैग जी हॉस्पिटल का सजीव चित्रण करती सार्थक लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई सादर 

Comment by Samar kabeer on July 25, 2018 at 11:27am

जनाब मिर्ज़ा हफ़ीज़ बैग साहिब आदाब,उम्दा लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by babitagupta on July 24, 2018 at 7:17pm

बेहतरीन लघुकथा के माध्यम से गैर सरकारी अस्पतालों की लूट खसोट वाली प्रवति पर तीखा प्रहार करती हैं,हार्दिक बधाई स्वीकार कीजियेगा आदरणीय सरजी।

Comment by TEJ VEER SINGH on July 23, 2018 at 3:11pm

हार्दिक बधाई आदरणीय मिर्ज़ा हाफ़िज़ बेग जी।आज की चिकित्सा व्यवस्था पर कटाक्ष करती बेहतरीन लघुकथा।

Comment by Neelam Upadhyaya on July 23, 2018 at 2:40pm

आदरणीय मिर्जा हाफिज बेग साहब,  नमस्कार ।  आजकल तो सुपर स्पेशलिटी के नाम पर खुलने वाले अस्पताल फाइव स्टार हॉस्पिटल हैं और इसी स्टेटस की फीस वसूल करते हैं।  अच्छे विषय पर बेहतरीन  लघुकथा  की प्रस्तुति । बधाई स्वीकार करें ।  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी रचना का संशोधित स्वरूप सुगढ़ है, आदरणीय अखिलेश भाईजी.  अलबत्ता, घुस पैठ किये फिर बस…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, आपकी प्रस्तुतियों से आयोजन के चित्रों का मर्म तार्किक रूप से उभर आता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"//न के स्थान पर ना के प्रयोग त्याग दें तो बेहतर होगा//  आदरणीय अशोक भाईजी, यह एक ऐसा तर्क है…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, आपकी रचना का स्वागत है.  आपकी रचना की पंक्तियों पर आदरणीय अशोक…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी प्रस्तुति का स्वागत है. प्रवास पर हूँ, अतः आपकी रचना पर आने में विलम्ब…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद    [ संशोधित  रचना ] +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी सादर अभिवादन। चित्रानुरूप सुंदर छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी  रचना को समय देने और प्रशंसा के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। चित्रानुसार सुंदर छंद हुए हैं और चुनाव के साथ घुसपैठ की समस्या पर…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी चुनाव का अवसर है और बूथ के सामने कतार लगी है मानकर आपने सुंदर रचना की…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी हार्दिक धन्यवाद , छंद की प्रशंसा और सुझाव के लिए। वाक्य विन्यास और गेयता की…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service