स्वतंत्रता दिवस पर ३ रचनाएं :
एक चौराहा
लाल बत्ती
एक हाथ में कटोरा
भीख का
एक हाथ में झंडा बेचता
कागज़ का
न भीख मिली
न झंडा बिका
कैसे जलेगा
चूल्हा शाम का
क्या यही अंजाम है
वीरों के बलिदान का
सुशील सरना
.... .... ..... ..... ..... ..... ....
हाँ
हम आज़ाद हैं
अब अंग्रेज़ नहीं
हम पर
हमारे शासन करते हैं
अब हंटर की जगह
लोग
आश्वासनों से
पेट भरते हैं
महंगाई,भ्रष्टाचार
और
रोटी की
मरीचिका में जीते हैं
और उसी में मरते हैं
सुशील सरना
.... ..... ...... ...... ...... ...
ये किस दीमक ने
अपने घर को कमजोर कर दिया
शहीदों की कसमें
किर्चियों सी बिखरने लगीं
उनका सपना
एक सपना बन कर रह गया
कल
वीरों ने कसमें खाईं तो
आज़ादी भी दिलवाई
आज के दिन
एक कसम
हम भी खाएं
भ्रष्टाचार की दीमक से
हिन्दुस्तान बचाएं
अपने हिन्दुस्तान को
भीख मुक्त बनाएं
शहरी सैनिक बन कर हम
अपना फ़र्ज़ निभाएं
भूले जो वीरों की कसमें
उनको हम दोहराएं
जय हिन्द के नारे से हम आज
तिरंगे को फहराएं
सुशील सरना
मौलिक एवं अपक्राशित
Comment
आदरणीया नीलम उपाध्याय जी सृजन के भावों को आत्मीय स्नेह देने का दिल से शुक्रिया।
आदरणीय सुशिल सरना जी, नमस्कार। वर्तमान में समाज में व्याप्त विसंगतियों कटाक्ष करती बहुत ही सूंदर रचना। प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
आदरणीया समर कबीर साहिब , आदाब ... सृजन के भावों को अपनी आत्मीय प्रशंसा से अलंकृत करने का दिल से आभार। सृजन आपकी मन मुदित करती प्रशंसा का आभार है। सर आपकी पैनी दृष्टि का मैं कायल हूँ। आपका मार्गदर्शन सदा मेरे सृजन को सशक्त करता है। इस हेतु आपका तहे दिल से शुक्रिया।
आदरणीया सुरेन्द्र नाथ सिंह जी सृजन आपकी मन मुदित करती प्रशंसा का आभार है।
आदरणीया लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया का आभार है।
आदरणीया मो.आरिफ साहिब , आदाब ... सृजन के भावों पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से शुक्रिया।
आदरणीया डॉ विजय शंकर जी सृजन के भावों पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से शुक्रिया।
आदरणीया बबितागुप्ता जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से शुक्रिया।
जनाब सुशील सरना जी आदाब,क्या तारीफ़ करूँ इन रचनाओं की,वाह बहुत ख़ूब, बेहद सटीक,और मार्मिक,दिल को छू गईं पहली दो रचनाएँ,लेकिन तीसरी भावनाओं में बह गई, इस बहतरीन प्रस्तुति पर दिल से ढेरों बधाइयाँ स्वीकार करें ।
'किर्चियों सी बिखरने लगी'--"किर्चियों सी बिखरने लगीं"
' वीरों ने कसमें खाई तो'--"वीरों ने क़समें खाईं तो"
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