ऐ आसमान ....
क्या हो तुम
आज तक कोई नहीं
छू पाया तुम्हें
फिर भी तुम हो
ऐ आसमान
किसी बेघर की
छत हो
किसी का ख्वाब हो
किसी परिंदे का लक्ष्य हो
या
किसी रूह का
अंतिम धाम हो
क्या हो तुम
ऐ आसमान
नक्षत्रों का निवास हो
किसी चातक की प्यास हो
मेघों का क्रीड़ा स्थल हो
सूर्य का पथ हो
या
चाँद तारों का आवास हो
क्या हो तुम
ऐ आसमान
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज' .जी. सृजन के भावों को मान देने का दिल से शुक्रिया।
वाह अच्छी कविता हुई आदरणीय
आदरणीय नरेन्द्रसिंह जी सृजन आपकी मधुर प्रतिक्रिया का आभारी है।
आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब। ... सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार। आपको सपरिवार ईद मुबारक।
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रस्तुति आपकी मधुर प्रशंसा की आभारी है।
आदरणीय मो.आरिफ साहिब, आदाब .... सृजन के भावों पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार। आपको सपरिवार ईद मुबारक।
आदरणीय डॉ छोटेलाल सिंह जी सृजन को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।
आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का आभारी है।
जनाब सुशील सरना जी आदाब,बहुत उम्दा कविता हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
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