मिश्रित दोहे :
कड़वे बोलों से सदा, अपने होते दूर।
मीठी वाणी से बढ़ें, नज़दीकियाँ हुज़ूर।।
भानु किरण में काँच भी, हीरे से बन जाय।
हीरा तो अपनी चमक, तम में ही दिखलाय।।
घडी-घड़ी क्यों देखता, जीव घडी की चाल।
घड़ी गर्भ में ही छुपा, उसका अंतिम काल।।
हंस भेस में आजकल, कौआ बांटे ज्ञान।
पीतल सोना एक सा, कैसे हो पहचान।।
राखी का त्यौहार है बहना की मनुहार।
इक -इक धागे में बहिन, बाँधे अपना प्यार।।
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
जनाब सुशील सरना जी आदाब,अच्छे दोहे रचे आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आ. भाई सुशील जी, सुंदर दोहे हुए हैं । हार्दिक बधाई ।
आदरणीय Mohammed Arif जी सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से शुक्रिया।
आदरणीय सुशील सरना जी आदाब,
समसामयिक विषयों पर बेहतरीन दोहे । हार्दिक बधाई स्वीकार करें । बिक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।
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