शोर भौरों का सुनोगे
तितलियाँ अब मौन हैं
रक्त रंजित हो उठा मन
रोज के अख़बार से
हर कली सहमी हुई है
आह अत्याचार से
इस चमन में भेड़ियों से
आदमी ये कौन हैं
शोर भौरों का सुनोगे
तितलियाँ अब मौन हैं
प्रीत का संगीत गुमसुम
भाव के व्यापार में
सत्य का उपहास करता
छल कपट संसार में
प्रेम है अनुबंध जैसा
प्रेम परिणय गौण है
शोर भौरों का सुनोगे
तितलियाँ अब मौन हैं
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'
Comment
आदरणीय ब्रजेश कुमार जी आपकी भावपरक गीत पढ़कर बड़ी प्रसन्नता हुई इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद
आभार संग नमन आदरणीय लक्ष्मण धामी जी..
आदरणीय सुशील सरना जी हार्दिक धन्यवाद...
रचना पटल पे आपका हार्दिक स्वागत है आदरणीय गंगाधर शर्मा जी...
आ. भाई बृजेश जी, सुंदर और भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई।
आदरणीय बृजेश जी सुंदर और भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई।
आदरणीय बृजेश जी...बहुत ही भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई....
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