उसको आये लगभग आधा घंटा हो चुके थे, रोज की तरह आज भी आने में देर हो गयी थी. दिन पर दिन काम का बढ़ता बोझ और ऊपर से नया बद्तमीज बॉस, रात होते होते ही वह छूट पाता था. हमेशा गुस्से में रहने वाला उसका दिमाग अब तो और भी गरम रहता, शाम को आने के बाद कोई उसके पास भी नहीं फटकता था. अकेले टी वी के सामने बैठकर चाय पीना और घटिया सीरियल देखकर समय काटना उसकी दिनचर्या बन गयी थी. लेकिन आज गणपति विसर्जन और उससे जुड़े कार्यक्रम उसको काफी सुकून दे रहे थे.
दूसरे कमरे में रिंकी अपनी माँ के पास खड़ी थी, दोनों की हालत खराब थी कि जैसे ही पापा लैपटॉप मांगेंगे, क्या जवाब देंगी. आज दोपहर में लैपटॉप गिरकर टूट गया था और उसको बनने में काफी पैसा और समय लगने वाला था. माँ रिंकी को झूठी दिलासा दे रही थी कि चिंता मत कर, मैं संभाल लूंगी.
"रिंकी, जरा लैपटॉप तो लाना", आवाज़ सुनते ही पहले उसकी पत्नी कमरे में आयी. उसने एक नजर उसकी तरफ देखा और फिर चिल्लाया "रिंकी, सुनाई नहीं दिया क्या?"
"दरअसल आज लैपटॉप खराब हो गया है, मुझसे ही गिर गया", पत्नी ने अटकते हुए कहा.
जब उसको समझ में आया तो उसका खून बुरी तरह खौल गया. इतना महंगा लैपटॉप, अभी कुछ ही महीने पहले लिया था. एकदम से वह गुस्से में कांपते हुए खड़ा हुआ और उसके मुंह से बहुत खराब गाली निकलने वाली थी कि वह ठिठक गया. अभी टी वी में कोई व्यक्ति बता रहा था कि अपनी गलत आदतों का विसर्जन भी उतना ही जरुरी है जितना गणपति का.
कुछ मिनट वह वैसे ही खड़ा रहकर वापस सोफे पर बैठ गया. पत्नी घबराई हुई उसे देख रही थी तभी उसने बहुत शांत लहजे में कहा "पिंकी बेटी, उसको बनने के लिए दिया कि नहीं. टूट गया तो क्या, बन जायेगा".
पत्नी को कुछ समझ में नहीं आया, पिंकी भी कमरे से निकलकर उसके सामने आ खड़ी हुई. उसने उठकर पिंकी का सर सहलाया और मुस्कुराते हुए पत्नी का हाथ अपने हाथ में लेकर दबा दिया.
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत शुक्रिया आ बृजेश कुमार 'ब्रज' जी
बहुत ही अच्छी भावपूर्ण लघुकथा लिखी है आदरणीय...
बहुत बहुत आभार आ मुहतरम समर कबीर साहब
बहुत बहुत आभार आदरणीय अजय तिवारी जी, इतनी खूबसूरत टिपण्णी पढ़कर दिल को सुकून मिल गया. उम्मीद है आप आगे भी स्नेह बनाये रखेंगे
जनाब विनय कुमार जी आदाब,बहुत उम्दा लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय विनय जी, साधारण के माध्यम से असाधारण को प्रस्तुत करना कोई आप से सीखे. आपकी कथाएं धीमे सुर के मार्मिक संगीत की तरह है. एक और छू लेने वाली कथा के लिए हार्दिक बधाई.
बहुत बहुत आभार आ तेज वीर सिंह जी
बहुत बहुत आभार आ लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी
बहुत बहुत आभार आ सुशील सरना जी
हार्दिक बधाई आदरणीय विनय जी। बेहतरीन लघुकथा। मनुष्य अगर अपनी बुरी आदतों पर विजय प्राप्त कर ले तो इससे बढ़कर कोई विसर्जन नहीं है।
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