नववर्ष के रात्रिकालीन जश्न में मनमाफ़िक़ सेवन करने के साथ ही 'गरमा-गरम मंच' से मुख़ातिब हुए वे दोनों डकार मारते हुए आपस में चर्चा करने लगे :
"वाह.. नशा छा रहा है... मज़ा आ रहा है... !"
"कबाब उड़ाने के बाद तुझे तो शबाब से सराबोर इस नृत्य में भी 'जन्नत' ही नज़र आ रही होगी न!"
"तू तो कलमकार है! शराब के नशे में भी तुझे तो इस 'नंगी' सी नर्तकी में नंगी हो रही 'इंसानियत', 'हैवानियत' या 'तहज़ीब' के "बिम्ब" नज़र आ रहे होंगे या 'डिम्ब'! मुझे तो जिम में तराशे गये हर 'लिम्ब' की हर हरक़त में 'स्वर्ग' के "प्रतिबिम्ब" दृष्टिगोचर हो रहे हैं लेखक महोदय!"
फिर वह खड़े होकर अपनी टी-शर्ट उतारकर उसे लहराकर उसी जगह नाचने लगा। दूसरे ने वहीं कुर्सी में बैठे हुए ज़ेब से कलम और डायरी निकाली और अशआर लिखने लगा।
(लिम्ब Limb = हाथ-पैर आदि अंग; डिम्ब Dimb = आरंभिक अवस्था/अंडा.../हलचल/भय...)
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदाब। विगत वर्ष समापन तक इतने सारे सुधी सदस्यगण की मेरी रचना पर उपस्थिति हेतु सादर हार्दिक धन्यवाद। नववर्ष की हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं।
बहुत ही प्रोत्साहक हौसला अफ़ज़ाई हेतु सादर हार्दिक आभार आदरणीय विजय निकोरे साहिब। सभी पाठकगण के प्रति हार्दिक आभार।
सदैव समान आपकी एक और अच्छी लघुकथा पढ़ कर खुश हुआ। हार्दिक बधाई, आदरणीय शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी ।
मेरी इस ब्लॉग पोस्ट पर अपना अमूल्य समय देकर अनुमोदन व हौसला अफ़ज़ाई हेतु तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब।
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
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