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"शैतानियत और कलम" (लघुकथा)

"नहीं, मुझे न तो फोटो लेने चाहिए और न ही वीडियो क्लिप बनाने की कोशिश!" यह सोचकर उसने अपना स्मार्ट फोन वापस जेब में रखा और सड़क पर मौत से लड़ती युवती को घेरे भीड़ को चीरता आगे निकल गया।


"किसी अपराध को होते देख लो, या पीड़ित को तड़पते देखो, तो चुप्पी साधकर ऐसे बन जाओ, जैसे कि कुछ देखा ही नहीं!" परिवार व दफ़्तर के सहकर्मियों और पुलिस-कोर्ट से दो-चार हो चुके तज़ुर्बेकार दोस्तों की हिदायतें याद आ रहीं थीं उसको!


थोड़ा आगे चलने पर उसे उसके पिताजी मिल गये। पूरी घटना उसने पिताजी को सुनाई। मुंह पर अपनी अंगुली रखकर समझाते हुए वे बोले - "ठीक किया तुमने! देखो, सुनो सबकी और सब कुछ; पर बोलो कुछ नहीं! .. नेट पर कभी कुछ भी वैसा अपलोड मत करो! गवाही से वाह-वाही मीडिया में मिल सकती है, सुरक्षा नहीं!"


पिताजी वहीं से उसके साथ वापस घर की ओर लौटने लगे।


"शिक्षक दिवस पर तुम्हें सम्मानित किया गया था और तुम्हारे पिताजी को आदर्श शिक्षक चुना गया था!" उसकी अंतर्आत्मा ने उसे धिक्कारा।


"ज़्यादा भावुकता और संवेनशीलता की ज़रूरत नहीं, समझे! भीड़ में और लोग भी तो थे; कहानी या आलेख में अब तुम अपनी भड़ास निकाल देना, ठीक है!" व्यावहारिकता के 'शैतान' ने उसको हालत मुताबिक़ सलाह दी।


(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 30, 2018 at 5:37pm

मेरी इस रचना पर भी समय देकर एक नियमित पाठक के विचारों/राय से अवगत करा कर मेरी यूं हौसला अफ़ज़ाई करने हेतु तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब विजय निकोरे साहिब।

Comment by vijay nikore on September 24, 2018 at 5:19am

आपकी लघुकथा सदैव शिक्षाप्रद होती है, या समाज के प्रति कटाक्ष से ध्यान आकृषित करती है, अथवा दोनों। इसीलिए आनन्द आता है आपकी लघुकथाएँ पढ़ कर। बहुत बधाई भाई शेख़ उस्मानी जी।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 21, 2018 at 12:13am

रचना पर समय देकर अपनी राय सांझा करने और मुझे प्रोत्साहित करने के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज' साहिब।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 20, 2018 at 6:07pm

अच्छा कटाक्ष किया है आदरणीय वर्तमान सामाजिक सोच पे...

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 18, 2018 at 8:54pm

अपने विचार सांझा करते हुए अनुमोदन और.हौसला अफ़ज़ाई हेतु तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब, जनाब सुशील सरना साहिब और जनाब 

 सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' साहिब।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 18, 2018 at 8:36pm

कृपया अंतिम पंक्ति में /हालत// की जगह //हालात // पढ़िएगा।

Comment by Sushil Sarna on September 18, 2018 at 7:08pm

आदरणीय उस्मानी साहिब, आदाब ... वर्तमान सोच पर करारा तंज। सामाजिक उत्तरदायित्व सिकुड़ते जा रहे हैं ... बदलती परिस्थितियों ने संवेदनाओं पर प्रहार कर उन्हें घायल कर दिया है। बहरहाल इस प्रेरक प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई।

Comment by नाथ सोनांचली on September 18, 2018 at 2:40pm

आद0 शेख़ शहज़ाद उस्मानी साहब सादर अभिवादन। बढ़िया व्यंग्यात्मक शिक्षाप्रद लघुकथा पर आपको बधाई देता हूँ। सादर

Comment by Samar kabeer on September 18, 2018 at 2:31pm

जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,अच्छी लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

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