"नेताजी, आज मुश्किल से तुम टाइम निकाल कर हमें इस पार्क में लाये हो, कुछ तो अच्छी बातें करो यहां, देश-दुनिया की छोड़ कर!" कमली ने अपने पति के कंधे पर सिर टिका कर कहा।
"पहले तो तुम यहां हमें 'नेताजी' के बजाय कुछ और कहो! ... उकता गया इस संबोधन और उबाऊ भाषणों से!"
"तो तुम पहले अपना नाम बदल लो, सब जगह के नाम तो बदले जा रहे हैं न! सहेलियों में 'रामनारायण' बताने में शरम सी आती है अब!"
"अब इस उमर में अपना नाम कैसे बदलें पगली!"
"बेटों के तो बदल गये विदेश में! बड़े को 'रामलाल' के बजाए उसके दोस्त "रैम" बोलते हैं और छोटे "कन्हैया" को "कैनी".. ! कमली ने नेताजी के साथ सेल्फ़ी लेते हुए कहा - "क्या हम तुम्हें "रॉम" या "रॉमी" कहेंं या फ़िल्म वाले बोनी और क्रिकेट वाले धोनी की तरह "रॉनी" कहेंं?"
"हे भगवान! ... तू तो मुझे 'नेताजी' ही कह ... लेकिन कुछ अलग ही 'टोन' में!" इतना कहकर वे पार्क के सफाईकर्मी की ओर लपके।
"अरे! झाड़ू लेकर ये करने लगे यहां!" कमली चौंक कर चिल्लाई।
"ज़ल्दी से तू मेरी दो-चार फोटो ले और वीडियो क्लिप बना झाड़ू लगाते हुए!.. जब बड़े-बड़े कर सकते हैं, तो हम छोटे नेता क्यों नहीं! ... सोशल मीडिया पर डालूंगा! सीज़न भी है इन दिनों!"
"किस ने कहा कि तुम छोटे हो? बड़ों जैसे सारे काम तो कर लिए नेतागिरी में! तुम जैसों से ही तो उनके सारे काम बनते हैं न!"
"अरे पगली! तू भी सब कुछ समझने लगी अब तो! .. इस बार तुझे ही चुनाव लड़वा दूं?.. महिलाओं का भी सीज़न है पार्टी में!"
"अब आये न लाइन पर! देर से अक्कल आई! पहले लड़वा देते, तो अब तक तो हमें वे कोई मंत्री बना देते! बहुत अहसान किये हैं तुमने उन पर!"
"अहसान तो उनके हैं हम पर पगली! वरना हम तो जेल में सड़ रहे होते! .. हमारे न तो इतने ऐश हो पाते और न ही हमारे बेटे विदेश में सेटल हो पाते!"
"अच्छा, ये तो बताओ कि बेटों की शादियां कब और किससे करवाओगे?"
"सेटिंग कर रहे हैं! कोशिश यही है कि किसी बड़े नेता, फ़िल्मी-हस्ती या उद्योगपति कि बेटियों से उनके टांके भिड़ जायें देश या विदेश में! ... पटा लेने से बेटों की ज़िंदगी ही नहीं, पीढ़ियां तर जायेंगी!" कमली के गले में हाथ डालकर नेताजी ने कहा और पार्क में बने शहीद स्मारक के ठीक सामने सेल्फ़ियां खींचने लगे।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
रचना के अनुमोदन और मेरी हौसला अफ़ज़ाई हेतु सादर हार्दिक धन्यवाद आदरणीय डॉ. विजय शंकर साहिब और आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर साहिब
सामयिक एवं सार्थक प्रस्तुति के लिए बधाई , आदरणीय शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी , सादर।
आ. भाई शेख शहजाद जी, बेहतरीन कथा हुयी है । हार्दिक बधाई ।
अपने विचार सांझा करते हुए अनुमोदन और.हौसला अफ़ज़ाई हेतु तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब, जनाब सुशील सरना साहिब और जनाब
सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' साहिब, जनाब तेजवीर सिंह साहिब और मुहतरमा नीलम उपाध्याय साहिबा।
कृपया यह भी बताया कीजिए कि मेरी ब्लॉग पोस्ट्स में कौन.सी लघुकथा हो सकी और कौन सी नहीं , आपकी व सुधीजन की राय में!
आदरणीय उस्मानी साहिब, आदाब ... आप अगर नेताओं की सोच का पोस्टमार्टम करते रहे तो चुनाव कैसे होंगे। हा हा हा ... सोच की तहें उधेड़ती अति सुंदर व्याख्या। इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई।
आद0 शेख शहज़ाद उस्मानी जी सादर अभिवादन। बढ़िया लघुकथा लिखी आपने। बधाई निवेदित है।सादर
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,बहुत उम्दा लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय शेख उस्मानी जी, नमस्कार। सघन राजनीती का पूरा किस्सा बयां कर दिया आपने। क्या जो चित्रण किया। है। बधाई स्वीकार करें।
हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी साहब जी।वर्तमान राजनीति का कच्चा चिट्ठा खोल कर रख दिया।समाज सेवा के नाम पर उल्लू बनाना ही आज देश भक्ति कहलाता है।बेहतरीन लघुकथा।
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