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जिंदगी रफ़्ता रफ़्ता पिघलती रही ।
आशिकी उम्र भर सिर्फ छलती रही ।।
देखते देखते हो गयी फिर सहर ।
बात ही बात में रात ढलती रही ।।
सुर्ख लब पर तबस्सुम तो आया मगर ।
कोई ख्वाहिश जुबाँ पर मचलती रही ।।
इक तरफ खाइयाँ इक तरफ थे कुएं ।
वो जवानी अदा से सँभलती रही ।।
जाम जब आँख से उसने छलका दिया ।
मैकशी बे अदब रात चलती रही ।।
देखकर अपनी महफ़िल में महबूब को।
पैरहन बेसबब वह बदलती रही ।।
यूँ ही ठुकरा गया हुस्न जब इश्क़ को ।
तिश्नगी उम्र भर हाथ मलती रही ।।
उस परिंदे की फितरत है उड़ना बहुत ।
बे वज्ह आपको बात खलती रही ।।
बच गए हम तो क़ातिल नज़र से सनम ।
मौत आंगन में आकर टहलती रही ।।
रेत मानिंद सहरा में वो हाथ की ।
मुट्ठियों से हमारी फिसलती रही ।।
दिल जलाने की साजिश लिए साथ में ।
वो हमारी गली से निकलती रही ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
- मौलिक अप्रकाशित
Comment
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
' सुर्ख लब पर तबस्सुम तो आये मगर'
इस मिसरे में 'आये' को "आया" कर लें ।
' जाम जब आँख से उसने छलका दिया ।
मैकशी बे अदब रात चलती रही'
इस शैर में भाव स्पष्ट नहीं है,देखियेगा ।
' जब से ठुकरा दिया हुस्न ने इश्क़ को'
इस मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर देखें ।
' रेत मानिंद सहरा में ढूढा उसे ।
आरजू मुट्ठियों से फिसलती रही'
इस शैर के ऊला मिसरे का शिल्प कमज़ोर होने से सानी मिसरे से रब्त नहीं हो रहा,भाव भी स्पष्ट नहीं ।
' साजिशन तू गली से निकलती रही'
इस मिसरे में 'साजिशन' शब्द ग़लत है ।
आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी प्रणाम , सुंदर गजल के लिए हार्दिक बधाई | सादर
आ. भाई नवी जी, सादर अभिवादन । अच्छी गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।
हार्दिक बधाई आदरणीय नवीन मणि जी।बेहतरीन गज़ल।
उस परिंदे की फितरत है उड़ना बहुत ।
बे वज्ह आपको बात खलती रही ।।
बच गए हम तो क़ातिल नजर से सनम ।
मौत आंगन में आकर टहलती रही ।।
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