अभी तो यहाँ कुछ हुआ ही नहीं है ।
वो नादां उसे तज्रिबा ही नही है ।।1
उसे ही मिलेगी सजा हिज्र की अब ।
मुहब्बत में जिसकी ख़ता ही नहीं है ।।2
मिलेगा कहाँ से हमें कोई धोका ।
हमें आप का आसरा ही नहीं है ।।3
अगर आ गए हैं तो कुछ देर रुकिए ।
अभी तो मेरा दिल भरा ही नहीं है ।।4
है बेचैन कितना वो आशिक तुम्हारा ।
कहा किसने जादू चला ही नहीं है ।।5
जिधर जा रही वो उधर जा रहे हम ।
हमें जिंदगी से गिला ही नहीं है ।।6
बताने लगा है ये नफरत का लहज़ा ।
मेरा खत वो अबतक पढ़ा ही नहीं है ।।7
भरोसा न कीजै यहाँ पर किसी का ।
सियासत में कोई सगा ही नहीं है ।।8
यहाँ हाले दिल पूछते हैं वो जैसे ।
कि उनको मेरा गम पता ही नहीं है ।।9
करूँ अर्ज कैसे ज़माना है क़ातिल ।
चमन में कहीं देवता ही नहीं है ।।10
लगी आग बेशक जली दिल की बस्ती ।
धुंआ देखिये कुछ उठा ही नहीं है ।।11
नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
Comment
आ0 नरेंद्र सिंह चौहान साहब हार्दिक आभार ।
आ0 मुसाफ़िर साहब तहे दिल से शुक्रिया ।
आ0 तेजवीर सिंह साहब तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रियः ।
आ0 कबीर सर सादर नमन ।
सर अवश्य प्रयास करूंगा । ईश्वर आपका स्नेह बनाएं रखें ।
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।
मतले का सानी मिसरा और बहतर करने का प्रयास करें ।
हार्दिक बधाई आदरणीय नवीन जी। बेहतरीन गज़ल।
भरोसा न कीजै यहाँ पर किसी का ।
सियासत में कोई सगा ही नहीं है ।।8
आ. भाई नवीन जी, अच्छी गजल हुयी है । हार्दिक बधायी ।
खुब उम्दा रचना..
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