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पढ़ो तो इसको’ फाड़ो मत- गजल

© बसंत कुमार शर्मा

मापनी - १२२२ १२२२ १२२२ १२२२ १२२२

 

सदा देता, न लेता कुछ, बुरी नजरों से ताड़ो मत

शजर है घर परिंदों का, उसे तुम यूँ उजाड़ो मत

 

बड़ी उम्मीद होगी, मगर कुछ भी न पाओगे

सयानी है बहुत जनता, यूँ मंचों पर दहाड़ो मत

 

वहाँ पत्थर ही पत्थर थे, न मिट्टी थी न पानी था

उगा है अपने दम पर वो, पनपने दो उखाड़ो मत

 

कभी तन्हा अगर हों तो सुकूं देती बहुत हमको

ज़ेहन में पर्त यादों की जमी रहने दो’ झाड़ो मत

 

कमाकर खर्च कर लेना या’ फिर दान में दे दो  

बड़े ही काम की दौलत जमीं में इसको’ गाड़ो मत

 

करो हासिल इसे मेहनत लगन ईमानदारी से  

इधर से या उधर से तुम ये सिंहासन जुगाड़ो मत

 

लिखी है आँसुओं से ये कहानी है मुहब्बत की

नहीं कागज ये’ कोरा है पढ़ो तो इसको’ फाड़ो मत

"मौलिक एवं अप्रकाशित"

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Comment by बसंत कुमार शर्मा on October 13, 2018 at 9:43pm

आदरणीय   TEJ VEER SINGH जी सादर नमस्कार , आपकी हौसलाअफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on October 13, 2018 at 9:43pm

आदरणीय Sheikh Shahzad Usmani जी सादर नमस्कार , आपकी हौसलाअफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया 

Comment by V.M.''vrishty'' on October 13, 2018 at 9:21am
कहीं सामाजिक अव्यवस्था पर कटाक्ष करते,,तो कही शिक्षाप्रद शेर,, वाकई बहुत ही खूबसूरत रचना।
Comment by V.M.''vrishty'' on October 13, 2018 at 9:16am
आदरणीय बसंत कुमार शर्मा जी, प्रणाम! बहुत ही बेहतरीन रचना। बह्र का मुझे ज्ञान नही परंतु भाव एवं प्रवाह बेजोड़ है। कुछ सामाजिक अव्यवस्था
Comment by TEJ VEER SINGH on October 12, 2018 at 6:47pm

हार्दिक बधाई आदरणीय बसंत कुमार जी। बेहतरीन गज़ल।

करो हासिल इसे मेहनत लगन ईमानदारी से  

इधर से या उधर से तुम ये सिंहासन जुगाड़ो मत

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 12, 2018 at 6:39pm

 हर शे'अर में अद्भुत हक़ीक़त बयानी, गहराई, सबक़, नसीहत व प्रेरणा लबरेज़ है। बेहतरीन सृजन हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय बसंत कुमार शर्मा साहिब।

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