For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मौत की उम्मीद पर (ग़ज़ल)

मौत की उम्मीद पर जीने की आदत हो गयी
जिंदगी सूखे हुए पत्ते की सूरत हो गयी
ठंड ओलों की सही सूरज के अंगारे सहे
पीढ़ियों को पाल कर जर्जर इमारत हो गयी
चेहरा पैमाना बना है खूबियों का आज-कल
रंग गोरा है मगर गुमनाम सीरत हो गयी
धो दिया है तेज़ बारिश ने मकानों को मगर
टूटी फूटी झोंपड़ी वालों की शामत हो गयी
मैं! मेरा उत्कृष्ट सबसे! बाकी सब बेकार है
बस यही समझाने में अब हर जुबाँ रत हो गयी
©vrishty
मौलिक व अप्रकाशित

Views: 816

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राज़ नवादवी on October 17, 2018 at 11:31am

जी जनाब समर कबीर साहब, सादर. 

Comment by V.M.''vrishty'' on October 16, 2018 at 8:28pm
आदरणीय सुरेंद्र नाथ जी,प्रणाम! आपकी दी हुई बधाई दर बधाई ,आपको बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद
Comment by नाथ सोनांचली on October 16, 2018 at 4:15pm

आद0 वी. एम वृष्टि जी सादर अभिवादन। बढ़िया ग़ज़ल कही आपने। शैर दर शैर बधाई स्वीकार कीजिये

Comment by Samar kabeer on October 15, 2018 at 10:42pm



चेहरा पैमाना बना है खूबियों का आज-कल'

ये मिसरा तो ठीक है,राज़ साहिब,"पैमाना" का अर्थ यहाँ नाप-तोल यंत्र से है ।

Comment by राज़ नवादवी on October 15, 2018 at 4:10pm

आदरणीय वृष्टि जी, सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति पे बधाई स्वीकार करें. तीसरे शेर में 'अक्स पैमाना बना है' या 'चेहरा पैमां बना है' करने से मिसरा वज़न में आ जाएगा. बाक़ी गुणी जन बताएंगे. सादर 

Comment by V.M.''vrishty'' on October 15, 2018 at 3:12pm

आ० समर कबीर जी, बहुत बहुत आभार। मैं जरूर कोशिश करूँगी।

Comment by Samar kabeer on October 15, 2018 at 2:49pm

मुहतरमा "वृष्टि" जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

दिनांक 19-20;21 अक्टूबर को ओबीओ पर तरही मुशायरा होन्ने वाला है,इसके बारे में मुख्य पृष्ठ पर जानकारी मौजूद है,उसे पढ़ लें और मुशायरे में हिस्सा लें,वहाँ आपको बहुत कुछ सीखने को मिलेगा ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 14, 2018 at 9:00pm

आ. वृष्टि जी, सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई।

Comment by V.M.''vrishty'' on October 14, 2018 at 7:54pm

आदरणीय बृजेश कुमार जी, संध्या वंदन! जी सचमुच मुझे बह्र की जानकारी नहीं है। मैं लिखती रहती हूँ, मगर ज्यादा बंध के नही लिखती। लिखते समय विधा से और विधा की बारीकियों से ज्यादा मैं अपनी क्षमतानुसार विषय,भाव और प्रवाह पर ध्यान देती हूँ। 

मेरी रचना की सराहना करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद! सादर..

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 14, 2018 at 7:19pm

आदरणीया वृष्टि जी बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने..ग़ज़ल पढ़ के ये बिलकुल नहीं लगता कि आपको बह्र की जानकारी नहीं है।बहुत बहुत बधाई...

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हमको न/गर में गाँव/ खुला याद/ आ गयामानो स्व/यं का भूला/ पता याद/आ गया। आप शायद स्व का वज़्न 2 ले…"
1 hour ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"बहुत शुक्रिया आदरणीय। देखता हूँ क्या बेहतर कर सकता हूँ। आपका बहुत-बहुत आभार।"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय,  श्रद्धेय तिलक राज कपूर साहब, क्षमा करें किन्तु, " मानो स्वयं का भूला पता…"
2 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"समॉं शब्द प्रयोग ठीक नहीं है। "
2 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हर सिम्त वो है फैला हुआ याद आ गया  ज़ाहिद को मयकदे में ख़ुदा याद आ गया यह शेर पाप का स्थान माने…"
2 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"तन्हाइयों में रंग-ए-हिना याद आ गया आना था याद क्या मुझे क्या याद आ गया लाजवाब शेर हुआ। गुज़रा हूँ…"
3 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शानदार शेर हुए। बस दो शेर पर कुछ कहने लायक दिखने से अपने विचार रख रहा हूँ। जो दे गया है मुझको दग़ा…"
4 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मिसरा दिया जा चुका है। इस कारण तरही मिसरा बाद में बदला गया था। स्वाभाविक है कि यह बात बहुत से…"
4 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"खुशबू सी उसकी लाई हवा याद आ गया, बन के वो शख़्स बाद-ए-सबा याद आ गया। अच्छा शेर हुआ। वो शोख़ सी…"
4 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हमको नगर में गाँव खुला याद आ गया मानो स्वयं का भूला पता याद आ गया।१। अच्छा शेर हुआ। तम से घिरे थे…"
4 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"किस को बताऊँ दोस्त  मैं क्या याद आ गया ये   ज़िन्दगी  फ़ज़ूल …"
5 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"जी ज़रूर धन्यवाद! क़स्बा ए शाम ए धुँध को  "क़स्बा ए सुब्ह ए धुँध" कर लूँ तो कैसा हो…"
5 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service