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दुख बयानी है गजल - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२/२१२

अब न केवल प्यार की ही दुख बयानी है गजल
भूख गुरबत जुल्म की भी अब कहानी है गजल।१।


कल तलक लगती रही जो बस गुलाबों का बदन
अब पलाशों की  उफनती  धुर जवानी है गजल।२।


वो जमाना और था जब जुल्फ लब की थी कथा
माँ पिता के प्यार की  भी  अब निशानी है गजल।३।


पंछियों की चहचहाहट  फूल की मुस्कान भी
गीत गाती एक नदी की ज्यों रवानी है गजल।४।


पास जिनके यार खुशियाँ कर ही लेंगे सब्र वो
सबसे पहले गमजदा को यूँ  सुनानी है गजल।५।


आज तक जो है कहा कमतर नहीं यारो मगर
इससे बेहतर और भी इक यार आनी है गजल।६।


साथ आदम के रची  लय  यार इसकी ईश ने
प्रश्न तू अब पूछ मत कितनी पुरानी है गजल।७।


मौलिक-अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

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Comment by राज़ नवादवी on October 15, 2018 at 4:03pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी साहब, आदाब. बहुत ख़ूब, उम्दा ग़ज़ल कहने के लिए दिल से दाद क़ुबूल करें. बाक़ी गुणी जन अपनी राय देंगे. तीसरे शेर में 'जुल्फ लब' को जुल्फो लब किया जा सकता है. 'सबसे पहले गमजदा को यूँ  सुनानी है गजल' को 'ग़मज़दा हैं जो उन्हें पहले सुनानी है ग़ज़ल' किया जा  है 

सादर 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 15, 2018 at 12:03pm

आ. भाई आरिफ जी, सादर अभिवादन । उपस्थिति, उत्साहवर्धन और नेक सलाह के लिए सादर आभार ।

Comment by Mohammed Arif on October 15, 2018 at 11:56am

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आदाब,

                               बहुत ही सशक्त ग़ज़ल । हर शे'र माकूल । दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें ।

                                                गजल/ग़ज़ल,गुरबत/ग़ुरबत , जमाना/ज़माना जुल्म/ज़ुल्म आदि देखिएगा ।

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