नेताओं की मौज है, राजनीति के गाँव
छाले लेकर घूमती, जनता दोनों पाँव।१।
सत्ता बाहर सब करें, यूँ तो हाहाकार
पर मनमानी नित करें, बनने पर सरकार।२।
जन की चिंता कब रही, धन की चिंता छोड़
कौन मचाये लूट बढ़, केवल इतनी होड़।३।
कत्ल,डैकेती,अपहरण, करके लोग हजार
सिखा रहे हैं देश को, हो कैसा व्यवहार।४।
साठ बरस पहले जहाँ, मुद्दा रहा विकास
आज वही संसद करे, बेमतलब बकवास।५।
राजनीति में आ बसे, अब तो खूब लफंग
जैसे चन्दन से लिपट, जीवित रहें भुजंग।६।
पहन मुखौटा बैठना, खूब सियासत धाम
जहाँ आम के साथ हैं, गुठली के भी दाम।७।
राजनीति में सब हुये, अब कुर्सी शौकीन
सुख में हैं नेता सभी, बस जनता गमगीन।८।
खिड़की कायर हो गयी, गूँगे - बहरे द्वार
व्यर्थ यहाँ अब चीखना, राजनीति का सार।९।
लाखों नेता भक्त हैं, देश भक्त ना एक
कर्महीन सब कर्म से,भावों का अतिरेक।१०।
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'जी।बेहतरीन दोहे।
राजनीति में सब हुये, अब कुर्सी शौकीन
सुख में हैं नेता सभी, बस जनता गमगीन।८।
जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब,अच्छे दोहे रचे आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
दूसरे दोहे में तुकान्तता सहीह नहीं है,देखियेगा ।
आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन । दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार ।
खिड़की कायर हो गयी, गूँगे - बहरे द्वार
व्यर्थ यहाँ अब चीखना, राजनीति का सार...
वाह सुन्दर अति सुन्दर और समर्थ दोहे आदरणीय..उपर्लिखित दोहा तो कमाल है..
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