पिछले कुछ घंटों से उदास दिख रहे अपने दोस्त को देखकर उससे रहा नहीं गया. "क्या हो गया राजमन, बहुत उदास लग रहे हो".
राजमन ने एक नजर उसकी तरफ डाली और सोच में पड़ गया कि तेजू को बात बताएं कि नहीं. लेकिन तेजू तो उसकी हर बात, हर राज से वाकिफ़ था इसलिए उसे बताने में कोई हर्ज भी नहीं था.
"यार, तुम तो देख ही रहे हो ये आजकल का ट्रेंड, जिसे देखो वही इस #मी टू# के बहाने लोगों के नाम उछाल रहा है. रिटायरमेंट के बाद अब कहीं कोई मेरे खिलाफ भी यह चैप्टर न खोल दे, यही सोचकर घबरा रहा हूँ".
तेजू ने गहरी सांस ली "अच्छा तो यह वजह है, वैसे तुम्हारा कोई अफेयर मुझसे तो छिपा नहीं है. लेकिन शोषण तो तुमने किया ही था कई महिलाओं का".
"अब तुम भी यही कहोगे, मैंने शोषण किया है. अरे सबके अपने अपने स्वार्थ थे और सारे समझौते उसी के लिए तो हुए थे", राजमन ने अपनी दलील दी.
तेजू के चेहरे पर मुस्कराहट आ गयी "अब इतना तो तुम भी जानते हो कि उस समय तुम ऐसे पद पर थे कि लोगों की मदद कर सकते थे. लेकिन क्या उस समय तुम्हारी नैतिक जिम्मेदारी कुछ नहीं थी?
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत आभार आ मुहतरम तेज वीर सिंह साहब
बहुत बहुत आभार आ मुहतरम मिर्ज़ा हफ़ीज़ बेग साहब
बहुत बहुत आभार आ मुहतरम मिर्ज़ा जावेद बेग साहब
बहुत बहुत आभार आ मुहतरम समर कबीर साहब
हार्दिक बधाई आदरणीय विनय कुमार जी।बेहतरीन लघुकथा।
विनय कुमार जी,
सामयिक विषय उठाती लघुकथा हेतु बधाई।
जनाब विनय कुमार जी आदाब,अच्छी लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
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