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अनकहा ...

अभिव्यक्ति के सुरों में
कुछ तो अनकहा रहने तो
अंतस के हर भाव को
शब्दों पर आश्रित मत करो
अंतस से अभिव्यक्ति का सफर
बहुत लम्बा होता है
अक्सर इस सफ़र में
शब्द
अपना अर्थ बदल देते हैं
शब्दों अवगुंठन में
अभिव्यक्ति
मात्र मूक व्यथा का
प्रतिबिम्ब बन जाती है
भावों की घुटन
मन कंदराओं में
घुट के रह जाती है
जीने के लिए
कुछ तो शेष रहने दो
अभिव्यक्ति के गर्भ में
कुछ तो
अनकहा रह जाने दो

सुशील सरना /१७. १०. १८
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Sushil Sarna on October 26, 2018 at 6:14pm

आदरणीय  बृजेश कुमार 'ब्रज' जी सृजन पर आपकी मधुर प्रशंसा का दिल से आभार।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 23, 2018 at 4:52pm

वाह बढ़िया कविता आदरणीय...

Comment by Sushil Sarna on October 22, 2018 at 12:37pm

आदरणीय शेख़ उस्मानी साहिब,आदाब सृजन पर आपके आत्मीय मान का दिल से शुक्रिया. टंकण त्रुटि को मैंने ठीक कर दिया है , इस हेतु आपका दिल से आभार ।

Comment by Sushil Sarna on October 22, 2018 at 12:35pm

आदरणीय Surkhab Bashar जी सृजन को मान देने का दिल से आभार।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 19, 2018 at 12:18am

'मनोविज्ञान' और 'दर्शन' का बेहतरीन भावपूर्ण शिल्पबद्ध सम्मिश्रण। हार्दिक बधाई और चिंतन-मनन उत्प्रेरण हेतु हार्दिक आभार आदरणीय सुशील सरना  साहिब। //कुछ तो शेष रहने तो// .. इस पंक्ति में शायद आप 'तो' के स्थान पर 'को' या 'दो' लिखना चाह रहे थे?

Comment by Surkhab Bashar on October 18, 2018 at 5:14pm

जनाब  सुशील  सरना  जी आदाब, बहुत अच्छी रचना हुई, मुबारक पेश करता हूँ

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