अनकहा ...
अभिव्यक्ति के सुरों में
कुछ तो अनकहा रहने तो
अंतस के हर भाव को
शब्दों पर आश्रित मत करो
अंतस से अभिव्यक्ति का सफर
बहुत लम्बा होता है
अक्सर इस सफ़र में
शब्द
अपना अर्थ बदल देते हैं
शब्दों अवगुंठन में
अभिव्यक्ति
मात्र मूक व्यथा का
प्रतिबिम्ब बन जाती है
भावों की घुटन
मन कंदराओं में
घुट के रह जाती है
जीने के लिए
कुछ तो शेष रहने दो
अभिव्यक्ति के गर्भ में
कुछ तो
अनकहा रह जाने दो
सुशील सरना /१७. १०. १८
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज' जी सृजन पर आपकी मधुर प्रशंसा का दिल से आभार।
वाह बढ़िया कविता आदरणीय...
आदरणीय शेख़ उस्मानी साहिब,आदाब सृजन पर आपके आत्मीय मान का दिल से शुक्रिया. टंकण त्रुटि को मैंने ठीक कर दिया है , इस हेतु आपका दिल से आभार ।
आदरणीय Surkhab Bashar जी सृजन को मान देने का दिल से आभार।
'मनोविज्ञान' और 'दर्शन' का बेहतरीन भावपूर्ण शिल्पबद्ध सम्मिश्रण। हार्दिक बधाई और चिंतन-मनन उत्प्रेरण हेतु हार्दिक आभार आदरणीय सुशील सरना साहिब। //कुछ तो शेष रहने तो// .. इस पंक्ति में शायद आप 'तो' के स्थान पर 'को' या 'दो' लिखना चाह रहे थे?
जनाब सुशील सरना जी आदाब, बहुत अच्छी रचना हुई, मुबारक पेश करता हूँ
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