For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

काल चक्र - लघुकथा -

काल चक्र - लघुकथा -

"राघव, तुम यहाँ रेलवे प्लेटफार्म पर, इस हालत में?"

मुझे एक बार तो विश्वास ही नहीं हुआ कि यह बेंच पर बैठा शख्स मेरा मित्र राघव ही है। दाढ़ी , बाल  बढ़े हुए। पैर में हवाई चप्पल। पाजामे के साथ ढीली सी टी शर्ट। मेरा हम उम्र था लेकिन अस्सी साल का बूढ़ा लग रहा था|

मैं जिस राघव का दोस्त था, वह तो सदैव आसमान में उड़ता था। शेर की तरह दहाड़ता था। कालेज के दिनों में वह अकेला बंदा था जो सूट बूट और टाई पहनकर कार में कॉलेज आता था। क्या शानदार  व्यक्तित्व था। हर कोई उसे दोस्त बनाने को लालायित रहता था। वह भी किसी को निराश  नहीं करता था। खानदानी रईस था लेकिन घमंड रत्ती भर भी नहीं। लड़कियां तो उसकी दीवानी थीँ। वह भी एक को दिल दे बैठा। परिवार नाराज हो गया लेकिन उसने अपना धर्म और वचन निभाया। कोर्ट मैरिज कर ली। परिवार ने रिश्ता तोड़ लिया| तक़दीर का धनी था। एक कंपनी में एच आर डी मैनेजर लग गया।एक बेटा भी हो गया।उसकी शान शौकत में कोई कमी नहीं आई। दयालु प्रवृति थी तो लोगों की सहायता भी करता था।

मगर आज उसे इस हाल में देखकर दिल टूट गया।

"राघव, कहीं जा रहे हो?"

"हाँ मित्र।"

"कहाँ?"

"जहाँ भी दाना पानी लिखा हो।"

"मैं कुछ समझा नहीं?"

"समझ तो मैं भी नहीं पाया।"

"कैसी बात कर रहे हो? क्या बेटे से कुछ अनबन हो गयी?"

"अरे नहीं मित्र, वह तो हीरा है। ईश्वर सब को ऐसी संतान दे।"

"तो क्या उसकी पत्नी से खटपट हुई है?"

"हाँ कुछ ऐसा ही समझ लो।"

"क्या हुआ कुछ विस्तार से बताओगे।"

"मित्र सौ बात की एक बात, उसे मेरा वहाँ रहना पसंद नहीं। जब तक पत्नी जीवित थी, सब ठीक था। उनके स्वर्गवास के बाद सब बदल गया। वह बात बात पर ऐसे डाँटती है, जैसे मेरी माँ हो। बाथ रूम गंदा कर दिया। चप्पल वहाँ रखो| घर में नौकर हैं लेकिन छोटे छोटे कामों के लिये मुझे बाज़ार भेजती है। एक मिनट चैन से बैठने नहीं देती। मेरे नाती को भी मुझसे बात नहीं करने देती। उसे मेरे विरुद्ध भड़काती है। मुझे चाय का शौक है लेकिन वह केवल दो बार चाय देती है।एक बार मैं खुद चाय बनाने लगा तो मेरी बनाई चाय फ़ेंक दी और कहा,"खबरदार जो दोबारा किचन में घुसे।"  बेटे से कहा तो घर में तूफ़ान मच गया।अपने मायके जाने लगी। आत्म हत्या की धमकी दे डाली। बड़ी मुश्किल से बात बनी। उसके बाद तो वह और भी उग्र हो गयी। अब मेरा वहाँ रहना दूभर हो गया।"

"मेरे साथ चलोगे।"

"नहीं मित्र, अब तो केवल अकेले ही सफ़र पर जाना है।"

"तुम्हारा समान कहाँ है?"

एक छोटा सा कपड़े का थैला दिखाते हुए कहा,

"जीवन के अंतिम सफ़र में सामान जितना कम हो उतना ही अच्छा है।"

 मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 944

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 9, 2018 at 9:44am

बड़ी ही खूबसूरत भावनात्मक लघुकथा के लिए बधाई आदरणीय...

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 7, 2018 at 9:52pm

किसी की संवेदनशीलता और सहनशीलता , किंतु अधिकांश की असंवेदनशीलता! बहुत ही मार्मिक विचारोत्तेजक रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब।

Comment by TEJ VEER SINGH on November 5, 2018 at 5:02pm

हार्दिक आभार आदरणीय नीलम जी।

Comment by Neelam Upadhyaya on November 5, 2018 at 12:33pm

 "जीवन के अंतिम सफ़र में सामान जितना कम हो उतना ही अच्छा है।"  परिवार  का इस तरह का असंवेदनशील व्यवहार  इंसान को निराशा ही नहीं करता जीवन के मोह से भी विमुख करता है ! हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह जी  |

Comment by TEJ VEER SINGH on November 4, 2018 at 11:00am

हार्दिक आभार आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ जी।

Comment by TEJ VEER SINGH on November 4, 2018 at 11:00am

हार्दिक आभार आदरणीय कल्पना भट्ट रौनक जी।

Comment by Mohammed Arif on November 4, 2018 at 7:39am

आदरणीय तेजवीर सिंह जी आदाब,

                                    उम्र की विडंबना कह लीजिए या काल की क्रूरता हर हाल में शिकार व्यक्ति ही होता है । सारी उम्र जिस घर-परिवार को बनाने खप जाती है कोई दूसरा आकर उसे तहस-नहस कर देता है । पता नहीं क्यों अन्य परिवार से आई स्त्री घर के बुजुर्गों को फूटी आँखों नहीं सुहाती । ये दुष्ट प्रवृत्ति उनमें जाने कहाँ से आती है । 

                                                         कुछ वर्तनीगत अशुद्धियाँ हैं । हार्दिक आभार इस शानदार पेशकश पर ।

                

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on November 3, 2018 at 10:45pm

जीवन के अंतिम सफ़र में सामान ईतना कम हो उतना ही अच्छा है| कितना दर्द होता है जब अपने बच्चे ही ऐसा बर्ताव करें| बहुत अच्छी लघुकथा हुई है आदरणीय तेज वीर सिंह जी| क्या उम्र के इस मोड़ पर निराशा ही हाथ लगती है! हार्दिक बधाई |

Comment by TEJ VEER SINGH on November 3, 2018 at 7:55pm

हार्दिक आभार आदरणीय समर क़बीर साहब जी।

Comment by TEJ VEER SINGH on November 3, 2018 at 7:54pm

हार्दिक आभार आदरणीय  राज़ नवादवी जी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"सभी अशआर बहुत अच्छे हुए हैं बहुत सुंदर ग़ज़ल "
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Jul 12
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Jul 10
Admin posted discussions
Jul 8
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service