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इस कदर बेबस हूँ मैं, लाचार हूँ इस ज़िन्दगी से
दोस्तों, मर भी नहीं सकता अभी, अपनी खुशी से।
क्या कहूँ, अपने लिए कुछ, दूसरों के वास्ते कुछ
कायदे तुमने लिखे है सोच बेहद दोगली से।
वक्त उन माँ-बाप को भी दे जरा, तेरे लिए
जो उभर पाये नहीं ताउम्र अपनी मुफ़लिसी से।
इश्क़ के सहरा में 'राहुल' प्यास से बदहाल यूँ हूँ
बूँद भर जल के लिए लिपटा हूँ काँटों की कली से।
मौलिक व अप्रकाशित ।
Comment
इस स्नेह के लिए बहुत बहुत आभार जनाब कबीर साहब
धन्यवाद भाई धामी जी, आपने भूल से अनिल लिख दिया शायद मेरा नाम
आ. भाई अनिल जी, हार्दिक बधाई ।
नेरी दुआ है कि आपकी परेशानी जल्द दूर हो जाये ।
जनाब समर कबीर साहब आपका आभारी हूँ ग़ज़ल पर मार्ग दर्शन हेतु,
इन दिनों लगभग लेखन से सन्यास ही लिया हुआ था जीवन में कुछ ऐसी ही परिस्थितियों का वर्चस्व है फिलहाल, बस यूं समझ लिजिए की वक्त इम्तिहान ले रहा है। बस आप बडों का आशीर्वाद ना रहे तो हर इम्तिहान से गुजरने का रास्ता मिलता रहेगा ।
भाई राज़ नवादवी जी बहुत बहुत धन्यवाद
जनाब राहुल डांगी जी, आदाब. इस ख़ूबसूरत पेशकश पे दाद के साथ मुबारकबाद. सादर.
जनाब राहुल डांगी जी आदाब,बहुत समय बाद ओबीओ पर आपकी ग़ज़ल से रूबरू हुआ हूँ,कहाँ रहे भाई ।
ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।
' इश्क़ के सहरा में 'राहुल' प्यास से बदहाल यूँ हूँ'
इस मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर है,इसे यूँ कर सकते हैं :;
'प्यास के सहरा में 'राहुल' इश्क़ से बदहाल यूँ हूँ'
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