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एक ताज़ा ग़ज़ल
जो भी जग में साथ हैं सब छूट जाने के लिए
क्यों हो तेरा ज़िक्र फिर दिल को दुखाने के लिए
दिल्लगी में शायद तेरी रह गई थी कुछ कमी
भेजा है क़ासिद को मेरा हाल पाने के लिए
इसलिए महसूस तेरी बेरुखी होती नहीं
मुझमें कुछ बाकी नहीं तुझको सुनाने के लिए
रात गहरी कट गई फिर भी न पाई रोशनी
आ गई बरसात मेरा दिल जलाने के लिए
आज कल मायूस होकर घूमता हूं दर बदर
इक खिलौना बन गया हूँ मैं जमाने के लिए
कोई सपना भी नजर में देर तक ठहरा नहीं
कुछ छुपाने के लिए थे कुछ बहाने के लिए
हर दफा खोटा ही निकला जौहरियों की जांच में
आप भी आए थे मुझको आजमाने के लिए
हौसलों की हो हिफाज़त इश्क की परवाह में
जिंदा भी रहना है हमको घर चलाने के लिए
कितना सन्नाटा खुला है इस अंधेरी रात में
शेर कोई चाहिए तुझको सुनाने के लिए
बस तेरा अहसास मुझ में देर तक ठहरा रहा
या तू ही हासिल है मुझको भूल जाने के लिए
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
समस्त मित्रों को हार्दिक आभार,सादर
आदरणीय कबीर साहब आपकी बेशकीमती इस्लाह का हार्दिक शुक्रिया
सदैव कृपा बनाये रक्खे
सादर
जनाब मनोज अहसास साहिब आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।
' दिल्लगी में शायद तेरी रह गई थी कुछ कमी '
ये मिसरा लय में नहीं है,इसे यूँ कर सकते हैं:-
'दिल्लगी में तेरी शायद रह गई थी कुछ कमी'
' कोई सपना भी नजर में देर तक ठहरा नहीं
कुछ छुपाने के लिए थे कुछ बहाने के लिए'
इस शैर में शुतरगुरबा देखें,ऊला में 'सपना' एक वचन सनी में बहुवचन,ऊला मिसरा यूँ कर सकते हैं:-
'आँख में सपने भी मेरी देर तक ठहरे नहीं'
आदरणीय मनोज कुमार जी आदाब, ग़ज़ल की सुन्दर प्रस्तुति के लिए दाद के साथ मुबारकबाद. सादर.
खूब सुंदर रचना
आदरणीय मनोज कुमार जी आदाब,
बहुत दिनोंं बाद आपकी कोई ग़ज़ल पढ़ रहा हूँ, पढ़कर अच्छा लगा । शे'र दर शे'र दाल के साथ दिली मुबारकबाद कुबूल करें । बाक़ी उस्ताद शाइर अपनी राय देंगे , इंतज़ार कीजिए ।
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