ट्रेन की बोगी में वह बालक न तो ख़ुश बैठा हुआ था और न ही दुखी। सजे-धजे किन्नरों से भरी बोगी में, पैसे गिनते हुए एक बुज़ुर्ग किन्नर को वह देख ही रहा था कि एक फेरी वाला मूंगफली बेचता हुआ वहां आया और दो-चार सवारियों को मूंगफलियां बेच कर,पैसे गिन कर उन्हें बाक़ी पैसे लौटाने लगा।
"अरे देखो, यह लंगड़ा और दोनों आंखों से अंधा है, फ़िर भी पैसों का सही हिसाब कर रहा है !" वह बालक बगल में बैठे उस किन्नर से बोल पड़ा, जो उसे समझा-बुझाकर उसके घर से अपने दल में शामिल करने के लिए लाया था उसके मां-बाप को भरोसा दिला कर। आख़िर उसके शारीरिक और मानसिक लक्षण किन्नर जैसे ही थे न!
उसकी बात सुनकर सभी सवारियां उस दिव्यांग फेरी वाले की गतिविधियों को ग़ौर से देखने लगीं।
"अंकल, दिन भर में कितना कमा लेते हो? ट्रेन में यह सब कैसे कर लेते हो?" उसने फेरी वाले से आश्चर्य के साथ पूछा।
"भगवान ने सिर्फ़ पैर और आंखें ही तो छीनी हैं, बाक़ी सौग़ातें नहीं! बाक़ी नैमतों से, हौसले से और इंसानियत वालों की मदद से सब कुछ हो जाता है बेटा! अपना और बीवी-बच्चों का पेट पाल लेते हैं, बस! भगवान बड़ा दयालु है!"
"तो, इनसे अच्छा शरीर तो मेरा है! सब कुछ दिया है भगवान ने मुझे!" फेरीवाले की बात सुनकर वह बालक साथ बैठे किन्नरों से बोला - "फ़िर मैं क्यों आप लोगों के साथ चलूं! मुझे नहीं करना आप जैसे काम!" इतना कहकर वह बोगी से दूसरी तरफ़ भागने लगा। इसके पहले कि कोई उसे रोकता, एक युवा किन्नर ने ज़ंजीर खींच दी और उसके पीछे-पीछे जाकर उसे कुछ पैसे देकर ट्रेन से उतारते हुए कहा - सिर्फ़ एक अंग सही नहीं है! तुम सब कुछ कर सकते हो, मैंने तो देर कर दी!"
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
रचना पर समय देकर अनुमोदन और हौसला अफ़ज़ाई हेतु बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरमा प्रतिभा पाण्डेय साहिबा, मुहतरमा नीलम उपाध्याय साहिबा, जनाबसमर कबीर साहिब और जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' साहिब। बढ़िया इस्लाह हेतु बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरमाप्रतिभा पाण्डेय साहिबा।
आ. भाई शेख शहजाद जी, अच्छी कथा हुयी है । हार्दिक बधाई ।
अच्छी लघुकथा हुई है आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी. हार्दिक बधाई।
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
व्यवस्था और सरकार की चीरफाड़ करती आपकी पिछली कई कहानियाँ एकरसता की शिकार हो रहीं थी। इस रचना में नयापन है हार्दिक बधाई आपको // सिर्फ एक अंग सही नहीं है// मुझे इस वाक्य की आवश्यकता प्रतीत नहीं हो रही है।
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