पिछले महीने की ही बात है। गुड्डू को लेकर हम सभी सपरिवार अपने बच्चों के स्कूल में आयोजित 'फ़न-फ़ेअर' दिखाने ले गये। उसके दोनों बड़े भाई-बहन ने मेले में समोसे-पकोड़े की स्टॉल में सहभागिता की थी। बच्चों के प्रोत्साहन और टिकट-ड्रॉ की लालसा में हमने बीस टिकट पहले ही ख़रीद लिये थे, जो गुड्डू के ही पर्स में सुरक्षित रखे हुए थे।
"वाओ! कितना सुंदर गेट सज़ा है! हमारे स्कूल का फ़न-फ़ेअर देखते ही रह जाओगे आप लोग!" वह ऐसे बोला जैसे कि वह यह मेला पहले ही घूम चुका हो या बहुत जानकारी हासिल कर चुका हो। हमारा हाथ छोड़ कर एल.के.जी. का यह विद्यार्थी हमसे आगे चल-चलकर हमें बता रहा था : "देखो, यहां हमारी कैंटीन है। पूरी एट्टीन स्टालें लगीं हैं इस बार! भैया-बाजी तो स्टॉल नंबर सिक्सटीन पर होंगे। लेकिन पहले ये देखो, ये है हमारी प्रिंसिपल मैडम की स्टॉल! यहां से गेम्ज़ जीतने वालों को प्राइज़ और गिफ़्ट मिलेंगे। पूरी सिक्स स्टालें हैं खेलों की!" गुड्डू हमें एक अच्छे गाईड की तरह लगातार बताते हुए मेला दिखा रहा था, भले ही उसकी सांस फूलने लगी थी। आख़िर यह उसके विद्यार्थी-जीवन का पहला विद्यालयीन 'फ़न-फ़ेअर' था न! अपने मन पर नियंत्रण करते हुए हमने पहले तो गुड्डू की रुचि के खेल उसे खिलवाये। एक खेल में वह जीता भी! हमसे पहले ही वह दौड़कर प्रिंसिपल मैडम की स्टॉल में जाकर न केवल पुरस्कार-उपहार ले आया, बल्कि एक सेल्फी भी सम्पन्न करा आया। पैकेट खोलने पर जैसे ही अंग्रेज़ी हैट निकला, तो तुरंत उसे पहन कर फ़ोटो लेने की ज़िद करने लगा। मैंने मोबाइल से दो-तीन फ़ोटो लिये और सोलहवीं स्टॉल पर सपरिवार पहुंचा। कार्टूनों के बड़े-बड़े कट-आउट्स से और हमारे घर की बहुत सी सजावट-सामग्री से सजी उस स्टॉल में अपने शिक्षकों और दो सहपाठियों के साथ खड़े आफ़िया और अमान हमें देख कर इतने ख़ुश हुए कि हम उनकी ख़ुशी लफ़्ज़ों में बयान नहीं कर सकते। दोनों ने अपने दल के साथ मिलकर बहुत परिश्रम भी तो किया था। यह उनका भी पहला अनुभव था सहभागिता का। सो सब कुछ बहुत असरदार था स्टॉल में। हमने सपरिवार स्वादिष्ट चटपटे समोसे और मिक्स-वेज-पकोड़े जमकर खाये। तभी हमारा ध्यान गुड्डू की ओर गया। वह वहां से ग़ायब था। थोड़ी ही देर में 'रेडियो-गणेशा-स्टॉल' से उद्घोषणा सुनाई दी। गुड्डू ने मम्मी-पापा के नाम फ़रमाइशी गाना समर्पित करवाया था। लाउडस्पीकर पर गाना बजने लगा "तू कितनी अच्छी है, प्यारी-प्यारी है, ओ मां, ओ मां!" गीत सुनकर हमारी बिटिया आफ़िया की आंखों में ख़ुशी के आंसू आ गए। अम्मीजान की ज़िद पर ही उसे इस स्टॉल में सहभागिता करने का अवसर मिला था। वरना हर बार भैया ही बाज़ी मार लेता था। मैं भी अपने फ़ैसले से बहुत ख़ुश था। पढ़ाई-लिखाई में होनहार अपने सभी बच्चों को मैं किसी भी विद्यालयीन पाठ्येतर गतिविधि से सीखने-सिखाने के अवसर से वंचित नहीं करना चाहता था, भले ही दूसरे ख़र्चों में कटौती करनी पड़ जाये।
अपने बच्चों वाली स्टॉल के बाद सब को आइसक्रीम खिलवाकर कुछ और गेम-स्टालों पर हम गये। इस बीच मंचीय कार्यक्रम शुरू हो गये। मुख्य अतिथि के स्वागत में बेहतरीन गीत प्रस्तुति के बाद उनका उद्बोधन सुना और कुछ बेहतरीन सांस्कृतिक कार्यक्रमों का हमने लुत्फ़ लिया।
" मुझे अच्छे से देखने दो न! अगले साल मैं भी यह सब करके दिखाऊंगा न!" गुड्डू बीच-बीच में दो-तीन बार हमसे बोला। हमें लगा कि वह तो तेज़ी से बड़ा हो रहा है। दिन ढल रहा था। फ़न-फ़ेअर में टिकट-ड्रॉ की घोषणाएं हुईं, लेकिन हमसे में से किसी का भी टिकट नंबर नहीं निकला।
"कोई बात नहीं!" मैंने गुड्डू से कहा उसे लाड़ करते हुए। वह अपने उपहार को हाथ में लेकर मुस्करा दिया। हम फिर सोलहवीं स्टॉल पर पहुंचे और आफ़िया, अमान और उनकी स्टॉल के दल से विदा लेकर वापस घर पहुंचे। घर पर भी मोबाइल पर सोशल-मीडिया से हासिल 'फ़न-फ़ेअर' के फ़ोटोज़ देखकर हम सपरिवार बहुत ख़ुश हुए।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
सारगर्भित संस्मरण है,बच्चे फनफेयर से भी बहुत कुछ सीखते हैं।बधाई आद०शेख शहज़ाद उस्मानी जी ।
आदाब। संस्मरण-लेखन के मेरे इस प्रथम प्रयास/अभ्यास पटल पर उपस्थित होकर मुझे प्रोत्साहित करने के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online