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राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ९२

२२१ २१२१ १२२१ २१२

मिलना नहीं जवाब तो करना सवाल क्यों
मेरी ख़मोशियों पे है इतना मलाल क्यों //१

दामाने इंतज़ार में कटनी है ज़िंदगी
मरने तलक है हिज्र तो होगा विसाल क्यों //२ 

यारों को कब पता नहीं कैसे हैं दिन मेरे
है जो नहीं वो ग़ैर तो पूछेगा हाल क्यों //३ 

जब है ज़रीआ कस्ब का कोई नहीं मेरा
आसाईशों की चाह की फिर हो मज़ाल क्यों //४ 

मैंने क़सीदा जब कोई लिक्खा न उसके नाम
देगा उधारी में मुझे साहू भी माल क्यों //५ 

करती नहीं है अब मुझे सोज़ाँ तेरी नज़र 
आएगा ठंढे ख़ून में मेरे उबाल क्यों//६ 

परहेज मेरे क़ुर्ब से इतना है जब तुझे
आता है मेरे फ़िक़्र में तेरा ख़याल क्यों //७ 

ग़र जो नहीं हो राज़ के लिक्खे के तुम मुरीद
देते हो उसके शेर की सबको मिसाल क्यों //८

~राज़ नवादवी

"मौलिक एवं अप्रकाशित"

मलाल- वैमनस्य, पश्चाताप; मज़ाल- हिम्मत, शक्ति, सामर्थ्य; कस्ब- कमाई; आसाईश- सुख, समृद्धि; क़ुर्ब- सामीप्य; विसाल- मिलन;


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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 5, 2019 at 5:59am

आ. भाई राज नवादवी जी, सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।

मिसरे को यूँ करने से भाव स्पष्ट हो जायेगा

' वो ग़ैर सा हुआ है तो पूछेगा हाल क्यों '

Comment by Samar kabeer on February 4, 2019 at 9:14pm

जनाब राज़ नवादवी साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'है जो नहीं वो ग़ैर तो पूछेगा हाल क्यों '

ये मिसरा स्पष्ट नहीं लगता ।

'आसाईशों की चाह की फिर हो मज़ाल क्यों'

इस मिसरे में 'मज़ाल' को "मजाल" करें ।

'आएगा ठंढे ख़ून में मेरे उबाल क्यों'

इस मिसरे में 'ठंढे' को "ठंडे" कर लें । 

'परहेज मेरे क़ुर्ब से इतना है जब तुझे 
आता है मेरे फ़िक़्र में तेरा ख़याल क्यों '

इस शैर के ऊला में 'परहेज' को "परहेज़" करें और सानी में 'मेरे' को "मेरी" करें,'फ़िक्र' स्त्रीलिंग है ।

'

तुम 'राज़' के कलाम के ग़र हो नहीं मुरीद

देते हो उसके शेर की सबको मिसाल क्यों'

इस शैर के ऊला में 'ग़र' को "गर" करें ।

Comment by राज़ नवादवी on February 3, 2019 at 3:52pm

कृपया मक़ते को इस प्रकार पढ़ें- 

तुम 'राज़' के कलाम के ग़र हो नहीं मुरीद

देते हो उसके शेर की सबको मिसाल क्यों //८

कृपया ध्यान दे...

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