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मिलना नहीं जवाब तो करना सवाल क्यों
मेरी ख़मोशियों पे है इतना मलाल क्यों //१
दामाने इंतज़ार में कटनी है ज़िंदगी
मरने तलक है हिज्र तो होगा विसाल क्यों //२
यारों को कब पता नहीं कैसे हैं दिन मेरे
है जो नहीं वो ग़ैर तो पूछेगा हाल क्यों //३
जब है ज़रीआ कस्ब का कोई नहीं मेरा
आसाईशों की चाह की फिर हो मज़ाल क्यों //४
मैंने क़सीदा जब कोई लिक्खा न उसके नाम
देगा उधारी में मुझे साहू भी माल क्यों //५
करती नहीं है अब मुझे सोज़ाँ तेरी नज़र
आएगा ठंढे ख़ून में मेरे उबाल क्यों//६
परहेज मेरे क़ुर्ब से इतना है जब तुझे
आता है मेरे फ़िक़्र में तेरा ख़याल क्यों //७
ग़र जो नहीं हो राज़ के लिक्खे के तुम मुरीद
देते हो उसके शेर की सबको मिसाल क्यों //८
~राज़ नवादवी
"मौलिक एवं अप्रकाशित"
मलाल- वैमनस्य, पश्चाताप; मज़ाल- हिम्मत, शक्ति, सामर्थ्य; कस्ब- कमाई; आसाईश- सुख, समृद्धि; क़ुर्ब- सामीप्य; विसाल- मिलन;
Comment
आ. भाई राज नवादवी जी, सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।
मिसरे को यूँ करने से भाव स्पष्ट हो जायेगा
' वो ग़ैर सा हुआ है तो पूछेगा हाल क्यों '
जनाब राज़ नवादवी साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
'है जो नहीं वो ग़ैर तो पूछेगा हाल क्यों '
ये मिसरा स्पष्ट नहीं लगता ।
'आसाईशों की चाह की फिर हो मज़ाल क्यों'
इस मिसरे में 'मज़ाल' को "मजाल" करें ।
'आएगा ठंढे ख़ून में मेरे उबाल क्यों'
इस मिसरे में 'ठंढे' को "ठंडे" कर लें ।
'परहेज मेरे क़ुर्ब से इतना है जब तुझे
आता है मेरे फ़िक़्र में तेरा ख़याल क्यों '
इस शैर के ऊला में 'परहेज' को "परहेज़" करें और सानी में 'मेरे' को "मेरी" करें,'फ़िक्र' स्त्रीलिंग है ।
'
तुम 'राज़' के कलाम के ग़र हो नहीं मुरीद
देते हो उसके शेर की सबको मिसाल क्यों'
इस शैर के ऊला में 'ग़र' को "गर" करें ।
कृपया मक़ते को इस प्रकार पढ़ें-
तुम 'राज़' के कलाम के ग़र हो नहीं मुरीद
देते हो उसके शेर की सबको मिसाल क्यों //८
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