ग़ज़ल (मिट चुके हैं प्यार में कितने ही सूरत देख कर)
(फाइ ला तुन _फाइ ला तुन _फाइ ला तुन _फाइ लु न)
मिट चुके हैं प्यार में कितने ही सूरत देख कर l
कीजिए गा हुस्न वालों से मुहब्बत देख कर l
मुझको आसारे मुसीबत का गुमां होने लगा
यक बयक उनका करम उनकी इनायत देख कर l
कुछ भी हो सकता है महफ़िल में संभल कर बैठिए
आ रहा हूँ उनकी आँखों में क़यामत देख कर l
देखता है कौन इज्ज़त और सीरत आज कल
जोड़ते हैं लोग रिश्ते सिर्फ़ दौलत देख कर l
आने वाली है तबाही मुल्क में लगता है ये
डूबी मज़हब के समुन्दर में सियासत देख कर l
प्यार जिसका आज तक हासिल न कर पाया कोई
उसके कूचे में परखना अपनी क़िस्मत देख कर l
इश्क़ में भी अब तिजा रत हो रही तस्दीक है
तुम किसी भी महजबीं से करना उलफत देख कर l
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
'इश्क़ में भी अब तिजा रत हो रही तस्दीक है
तुम किसी भी महजबीं से करना उलफत देख कर'
इस शेर की एक सूरत ये भी हो सकती है :
इश्क़ में भी याँ तिजारत है मियाँ तस्दीक तुम
अब किसी भी महजबीं से करना उलफत देख कर
सादर
आदरणीय तस्दीक साहब, खूबसूरत अशआर हुए हैं. हार्दिक बधाई.
इश्क़ में भी अब तिजारत हो रही तस्दीक है > इश्क़ में भी अब तिजारत है मियाँ तस्दीक याँ
जनाब बलराम साहिब , ग़ज़ल पर आपकी सुंदर प्रतिक्रिया और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया I
आदरणीय तस्दीक़ भाई, ग़ज़ल के सभी शेर क़ाबिले तारीफ़ हैं।
दाद के साथ मुबारक़बाद क़ुबूल फ़रमाएं।
सादर।
जनाब भाई लक्ष्मण धा मी साहिब, ग़ज़ल पर आपकी सुंदर प्रतिक्रियाऔर हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया I
आ. भाई तस्दीक अहमद जी, सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।
आने वाली है तबाही मुल्क में लगता है ये
डूबी मज़हब के समुन्दर में सियासत देख कर l
बहुत खूब..
मुहतरम जनाब समर साहिब आ दाब, ग़ज़ल पर आपकी खूबसूरत प्रतिक्रिया और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया I
जनाब तस्दीक़ अहमद साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
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