मफ़ऊल मफ़ाईल मफ़ाईल फ़अल
221 1221 1221 12
पाना जो शिखर हो तो मेरे साथ चलो
ये अज़्म अगर हो तो मेरे साथ चलो
दीवार के उस पार भी जो देख सके
वो तेज़ नज़र हो तो मेरे साथ चलो
होती है ग़रीबों की वहाँ दाद रसी
तुम ख़ाक बसर हो तो मेरे साथ चलो
पत्थर पे खिलाना है वहाँ हमको कँवल
आता ये हुनर हो तो मेरे साथ चलो
हर शख़्स वहाँ कड़वा करेला है "समर"
लहजे में शकर हो तो मेरे साथ चलो
"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
जनाब भाई विजय निकोर जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिए आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
//हर शख़्स वहाँ कड़वा करेला है "समर"
लहजे में शकर हो तो मेरे साथ चलो//
वाह!, बहुत ही खूबसूरत ख्याल। शानदार गज़ल के लिए बधाई, भाई समर जी।
जनाब अनीस शैख़ साहिब आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिए आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
जनाब मिर्ज़ा जावेद बैग साहिब आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिए आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
समर कबीर साहब बहुत ख़ूब बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है बहुत बहुत मुबारक
वाहहह मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब
आपके लिए कोई भी बहर ज़रा भी मुश्किल नहीं
बहुत उम्दा तख़लीक़ के लिए दिली मुबारक बाद पैश करता हूं
मेरी इस ग़ज़ल को फीचर ब्लॉग में लेने के लिए जनाब योगराज प्रभाकर साहिब का शुक्रगुज़ार हूँ ।
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