ग़ज़ल (यही ज़माने को खल रहा है )
(मफा इलातुन _मफा इलातुन)
यही ज़माने को खल रहा हैl
वो मेरे हम राह चल रहा है l
वो हैं मुखातिब तो मुझसे लेकिन
कलेजा यारों का जल रहा है l
नज़र में है सिर्फ उसके मंज़िल
जो गिरते गिरते संभल रहा है l
रखें निगाहों पे कैसे काबू
वो सामने से निकल रहा है l
बदल के शीशा है फायदा क्या
तेरा भी अब हुस्न ढल रहा है l
खयाल में आ रहा है दिलबर
न यूँ मेरा दिल मचल रहा है l
दगा की तुहमत लगी तो जाना
मुझे वो तस्दीक छल रहा है l
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
जनाब ब्रजेश कुमार साहिब, ग़ज़ल पसंद करने और आपकी हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया I
वाह बहुतखूब ग़ज़ल कही है आदरणीय तस्दीक जी...
मुहतरम जनाब समर साहिब आ दाब , ग़ज़ल पर आपकी खूबसूरत प्रतिक्रिया और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया I
जनाब तस्दीक़ अहमद साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
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