छा रहा नभ में अँधेरा
जुगनुओं ने सूर्य घेरा
नेह भावों से निचोड़ूँ दीप मैं घर घर जलाऊँ
वेदना तुझको बुलाऊँ
रो दिए वीरान पनघट
टूट के बिखरे हुए घट
हैं बहुत मुश्किल समय के ये थपेड़े सह न पाऊँ
वेदना तुझको बुलाऊँ
अश्रुओं से सिक्त वीणा
न कहूँ अंतस की पीड़ा
रिक्त भावों से पड़े तो किस तरह ये गीत गाऊँ
वेदना तुझको बुलाऊँ
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'
Comment
बहुत बहुत शुक्रिया मित्र..आमोद
वाहः बहुत सुंदर प्रस्तुति आदरणीय
बहुत बहुत आभार आदरणीय तेजवीर सिंह जी..सादर
हार्दिक बधाई आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज' जी।बहुत सुंदर नवगीत।
स्वागत संग आभार आदरणीय सलीम जी...
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय समर कबीर जी..सादर
बृजेश कुमार 'ब्रज' जी अच्छा नवगीत लिखा आपने,बधाई स्वीकार करें
जनाब बृजेश कुमार 'ब्रज' जी आदाब,अच्छा नवगीत लिखा आपने,बधाई स्वीकार करें ।
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