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श्वान  का दर्द

जब से शहर में चुनाव का बिगूल बज गया

श्वान का भी श्वान से खौफ निकल गया

शोर और सिर्फ शोर मच रहा सुबह शाम

पांच साल बाद नेता को पडा जनता से काम

  

श्वान हैरान परेशान घूमता रहता इधर उधर

जाए भी तो जाए कहाँ गली ना कूंचा ना घर

आश्चर्य अब उसे कोई भी नहीं करता है तंग

अब वो भी रहता है मौन नही करता निंद्रा भंग

 

वो भी क्य दिन थे हड्डी मिली तो चबा ली

वरना जबडे में किसी की टांग दबा ली

चुनाव ने तो इन सबका खौफ निकल दिया

मुझे आसमाँ से सिधे जमीन पे ला दिया

 

याद आई उसे एक कहावत “एवरि डोग हैज ए डे”

शायद परमात्मा भी मेरी एक दिन सुन ले

मन में निश्च्य किया वो भी मुस्कुराएगा मंद-मंद

जब तक नेता भौंकेंगे वो करेगा भौंकना बंद

 

-प्रदीप देवीशरण भट्ट- मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by PHOOL SINGH on April 15, 2019 at 5:13pm

श्वान हैरान परेशान घूमता रहता इधर उधर

जाए भी तो जाए कहाँ गली ना कूंचा ना घर

आश्चर्य अब उसे कोई भी नहीं करता है तंग

अब वो भी रहता है मौन नही करता निंद्रा भंग

अच्छी रचना के लिए बधाई स्वीकारें|

Comment by babitagupta on April 9, 2019 at 9:44pm

बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीय प्रदीप सरजी ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 9, 2019 at 9:14am

अच्छी रचना है आदरणीय..हालाँकि कई टाइपिंग मिस्टेक हैं।

Comment by Samar kabeer on April 8, 2019 at 11:32am

जनाब प्रदीप भट्ट जी आदाब,अच्छी रचना हुई,बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

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