जब से शहर में चुनाव का बिगूल बज गया
श्वान का भी श्वान से खौफ निकल गया
शोर और सिर्फ शोर मच रहा सुबह शाम
पांच साल बाद नेता को पडा जनता से काम
श्वान हैरान परेशान घूमता रहता इधर उधर
जाए भी तो जाए कहाँ गली ना कूंचा ना घर
आश्चर्य अब उसे कोई भी नहीं करता है तंग
अब वो भी रहता है मौन नही करता निंद्रा भंग
वो भी क्य दिन थे हड्डी मिली तो चबा ली
वरना जबडे में किसी की टांग दबा ली
चुनाव ने तो इन सबका खौफ निकल दिया
मुझे आसमाँ से सिधे जमीन पे ला दिया
याद आई उसे एक कहावत “एवरि डोग हैज ए डे”
शायद परमात्मा भी मेरी एक दिन सुन ले
मन में निश्च्य किया वो भी मुस्कुराएगा मंद-मंद
जब तक नेता भौंकेंगे वो करेगा भौंकना बंद
-प्रदीप देवीशरण भट्ट- मौलिक व अप्रकाशित
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श्वान हैरान परेशान घूमता रहता इधर उधर
जाए भी तो जाए कहाँ गली ना कूंचा ना घर
आश्चर्य अब उसे कोई भी नहीं करता है तंग
अब वो भी रहता है मौन नही करता निंद्रा भंग
अच्छी रचना के लिए बधाई स्वीकारें|
बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीय प्रदीप सरजी ।
अच्छी रचना है आदरणीय..हालाँकि कई टाइपिंग मिस्टेक हैं।
जनाब प्रदीप भट्ट जी आदाब,अच्छी रचना हुई,बधाई स्वीकार करें ।
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