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तेरे मेरे दोहे ....

तेरे मेरे दोहे ....

द्रवित हुए दृग द्वार से , अंतस के उदगार।
मौन रैन में हो गए, घायल सब स्वीकार।।

रेशे जीवन डोर के, होते बड़े महीन।
बिन श्वासों के देह ये, लगती कितनी दीन।।

दृशा दूषिका से भरी, दूषित हुए विचार।
वर्तमान में हो गए, खंडित सब संस्कार।।

लोकतंत्र में है मिला, हर जन को अधिकार।
अपने वोटों से चुने, वो अपनी सरकार।।

हर भाषण में हो रही, प्रजातंत्र की बात।
प्रजा झेलती तंत्र के ,नित्य नए आघात।।

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Sushil Sarna on May 2, 2019 at 4:37pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'  जी सृजन पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on May 2, 2019 at 4:37pm

आदरणीय Samar kabeer जी सृजन पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 2, 2019 at 10:54am

आ. भाई सुशील जी, सुंदर दोहे हुए हैं । हार्दिक बधाई।

Comment by Samar kabeer on May 2, 2019 at 10:40am

जनाब सुशील सरना जी आदाब,बहुत अच्छे दोहे लिखे आपने,बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Sushil Sarna on April 29, 2019 at 8:10pm

आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी सृजन पर आपकी मनभावन प्रशंसा का दिल से आभार। सर मैं पूरा प्रयास करूंगा।

Comment by नाथ सोनांचली on April 28, 2019 at 2:53pm

आद0 सुशील सरना जी सादर अभिवादन। बहुत बेहतरीन दोहे रचे आपने। बधाई स्वीकार कीजिये।

एक निवेदन-"समयानुसार दूसरों की रचनाओं पर भी अपनी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया दीजिये। सादर"

Comment by Sushil Sarna on April 28, 2019 at 1:18pm

आदरणीय  डॉ छोटेलाल सिंह जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार। 

Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on April 28, 2019 at 1:11pm

आदरणीय सुशील सरना जी बहुत बेहतरीन दोहे बधाई हो 

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