एक खास बह्र पर ग़ज़ल
122 122 121 22
तेरे हुस्न पर अब शबाब तय है ।
खिलेगा चमन में गुलाब तय है ।।
अगर हो गयी है तुझे मुहब्बत ।
तो फिर मान ले इज्तिराब तय है ।।
अभी तो हुई है फ़क़त बगावत ।
नगर में तेरे इंकलाब तय है ।।
बचा लीजिये आप कुछ तो पानी ।
मयस्सर न होगा ये आब तय है ।।
किया मुद्दतों तक वो जी हुजूरी ।
सुना है कि जिसका खिताब तय है ।।
अगर आ गए मैक़दे में तुम भी ।
तो महँगाई में भी शराब तय है ।।
करे कौन उल्फ़त का हौसला अब ।
जो किस्मत हमारी खराब तय है ।।
अगर माँग बैठा जो दिल मैं उनसे ।
तो मेरे सनम का जवाब तय है ।।
करेगा ख़ुदा से तू क्या तिज़ारत ।
सितम का तेरे जब हिसाब तय है ।।
मिलेगी न जन्नत तुम्हे कभी भी।।
तुम्हारे तो हक़ में अज़ाब तय है ।।
नहीं मिल सकेगी नज़र ये तुमसे ।
जो रुख पर तुम्हारे नकाब तय है ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
शब्दार्थ
शबाब युवा अवस्था
आब - जल
इज्तिराब - बेचैनी
अज़ाब पाप का फ़ल
ख़िताब - मेडल सम्मान चिन्ह
मौलिक अप्रकाशित
Comment
आदरणीय नवीन जी, ये अरकान किसी जायज़ बह्र में मुमकिन नहीं हैं. आपके अरकान(122 122 121 22 = 122 122 12 122) के सब से क़रीब की बह्र 122 122 122 122 है. एक नए प्रयास के लिए बधाई.
आदरणीय नवीन भाई , ग़ज़ल के लिए बधाई , ये बहर मेरे लिए नई है , अतः मैं कुछ कहने की स्थिति में नहीं हूँ , गुनीजनो का इन्तिज़ार कीजिए...
किया मुद्दतों तक वो जी हुजूरी ।
सुना है कि जिसका खिताब तय है
वाह क्या शेर है नवीन जी
बधाई
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