For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

..ऐसा हो तो फिर क्या होगा (गीत) ~ डॉ. प्राची

पूछ रहा हूँ मैं उन सच्ची ध्वनियों से जो मौन ओढ़ कर

मुझमें गूँजा करतीं हैं जो संदल-संदल अर्थ छोड़ कर...

...साँझ ढले और मैं ना आऊँ, ऐसा हो तो फिर क्या होगा ?

...धुँआ-धुँआ बन कर खो जाऊँ, ऐसा हो तो फिर क्या होगा ?

 

 

ऐ प्यासी धड़कन तू मेरी आस लगाए राह निहारे

मद्धम सी आहट सुनते ही मंत्रमुग्ध हो मुझे पुकारे

मैं तूफानी लहरों जैसा, तू तट के मंदिर में ज्योतित

क्यों आतुर है अपनाने को मझधारें तू छोड़ किनारे

 

कंदीलों की ओट तले तुझको झिलमिल-झिलमिल जलना है

मैं मशाल हूँ सिद्धांतों की मुझे हवाओं से लड़ना है

...जाने किस पल मैं बुझ जाऊँ, ऐसा हो तो फिर क्या होगा ?

...साँझ ढले और मैं ना आऊँ, ऐसा हो तो फिर क्या होगा ?

 

 

तन्हा रातों में बहती जब एहसासों की स्वर-लहरी थी

सुख-दुख के पन्नों पर तब-तब उतरी याद बहुत गहरी थी

उन यादों की तस्वीरों से साँसें अब तक छलक रहीं हैं

जहाँ-जहाँ टूटे सपनों पर, आह सिसकती जा ठहरी थी

 

उँगलियों की एक छुअन से नम होते वादों के पन्नों

घर के कण-कण में गुपचुप सोते मेरी यादों के पन्नों

...अगर कभी ना तुम्हे जगाऊँ, ऐसा हो तो फिर क्या होगा ?

...साँझ ढले और मैं ना आऊँ, ऐसा हो तो फिर क्या होगा ?

 

  

लिये सुनहरी कूची जिन सपनों में निश-दिन रंग भरता हूँ

सबसे बेहतर जिन्हें सँवारूँ पल-पल यत्न किया करता हूँ

फूल तितलियाँ जुगनू चाँद सितारे फीके जिनके आगे

जिनकी मुस्काँ पर जीता हूँ जिनकी मुस्काँ पर मरता हूँ

 

मेरे अक्स ढले सपने क्या खुद अपनी मंजिल पाएंगे

या नाज़ुक मोती मेरे बिन पल में टूट बिखर जाएंगे

...कभी उन्हें फिर छू ना पाऊँ, ऐसा हो तो फिर क्या होगा ?

...साँझ ढले और मैं ना आऊँ, ऐसा हो तो फिर क्या होगा ?

 

~प्राची
मौलिक और अप्रकाशित

Views: 643

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by नाथ सोनांचली on July 12, 2019 at 3:46pm

आद0 प्राची सिंह जी सादर अभिवादन। बेहतरीन गीत लिखा है आपने। बधाई स्वीकार कीजिए

Comment by Samar kabeer on July 10, 2019 at 8:15pm

मुहतरमा डॉ. प्राची सिंह जी आदाब,बहुत सुंदर गीत रचा आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

'जिनकी मुस्काँम पर जीता हूँ जिनकी मुस्काँ पर मरता हूँ'

इस पंक्ति में 'मुस्कान' को "मुस्काँ" करना उचित नहीं,इसके लिए जनाब अजय तिवारी जी का सुझाव उत्तम है,संज्ञान लें ।

Comment by Sushil Sarna on July 10, 2019 at 1:18pm

मेरे अक्स ढले सपने क्या खुद अपनी मंजिल पाएंगे

या नाज़ुक मोती मेरे बिन पल में टूट बिखर जाएंगे

...कभी उन्हें फिर छू ना पाऊँ, ऐसा हो तो फिर क्या होगा ?

...साँझ ढले और मैं ना आऊँ, ऐसा हो तो फिर क्या होगा ? ... बहुत खूब आदरणीया प्राची जी अंतर्मन के भावों , अंतर्द्वंदों का बेहद खूबसूरत चित्रण किया है आपने। दिल से बधाई स्वीकारें।

Comment by प्रदीप देवीशरण भट्ट on July 8, 2019 at 12:11pm

" कंदीलों की ओट तले तुझको झिलमिल-झिलमिल जलना है

मैं मशाल हूँ सिद्धांतों की मुझे हवाओं से लड़ना है

...जाने किस पल मैं बुझ जाऊँ, ऐसा हो तो फिर क्या होगा ?

...साँझ ढले और मैं ना आऊँ, ऐसा हो तो फिर क्या होगा"

बेहतरीन प्राची जी बधाई

Comment by Ajay Tiwari on July 6, 2019 at 12:21pm

आदरणीया प्राची जी,

फूल तितलियाँ जुगनू चाँद सितारे फीके जिनके आगे > जिनके आगे फीके जुगनू फूल-तितलियाँ चाँद-सितारे 

जिनकी मुस्काँ पर जीता हूँ जिनकी मुस्काँ पर मरता हूँ > जिन मुस्कानोंं पर जीता हूँ जिन मुस्कानों पर मरता हूँ

ये एक तात्कालिक और अनाधिकारिक सुझाव है. क्योंकि गीत के तकनीकी मामलों में मेरी गति नहीं है.

हमेशा की तरह एक और अच्छे गीत के लिए हार्दिक बधाई.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
8 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
9 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"वाह। आप तो मुझसे प्रयोग की बात कह रहे थे न।‌ लेकिन आपने भी तो कितना बेहतरीन प्रयोग कर डाला…"
11 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय गिरिराज जी।  नीलेश जी की बात से सहमत हूँ। उर्दू की लिपि…"
13 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. अजय जी "
16 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"मोर या कौवा --------------- बूढ़ा कौवा अपने पोते को समझा रहा था। "देखो बेटा, ये हमारे साथ पहले…"
17 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"जी आभार। निरंतर विमर्श गुणवत्ता वृद्धि करते हैं। अपनी एक ग़ज़ल का मतला पेश करता हूँ। पूरी ग़ज़ल भी कभी…"
17 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"क़रीना पर आपके शेर से संतुष्ट हूँ. महीना वाला शेर अब बेहतर हुआ है .बहुत बहुत बधाई "
17 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"हार्दिक स्वागत आपका गोष्ठी और रचना पटल पर उपस्थिति हेतु।  अपनी प्रतिक्रिया और राय से मुझे…"
17 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"आप की प्रयोगधर्मिता प्रशंसनीय है आदरणीय उस्मानी जी। लघुकथा के क्षेत्र में निरन्तर आप नवीन प्रयोग कर…"
18 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"अच्छी ग़ज़ल हुई है नीलेश जी। बधाई स्वीकार करें।"
18 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"मौसम का क्या मिज़ाज रहेगा पता नहीं  इस डर में जाये साल-महीना किसान ka अपनी राय दीजिएगा और…"
18 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service