यक्ष प्रश्न - लघुकथा -
गौतम ने बैंड बाजे के साथ अपनी एस यू वी गाड़ी से गणेश जी की प्रतिमा को विसर्जन हेतु दोनों बांहों में सहेज कर बाहर निकाला।
गौतम जैसे ही मूर्ति को लेकर विसर्जन हेतु नदी के तट पर पहुंचा और मूर्ति को विसर्जित करने ही वाला था कि एक अज्ञात हाथ ने उसका हाथ पकड़ लिया।
गौतम अचंभित होकर उस हाथ को पहचानने की चेष्टा करने लगा। उसे यह जानकर सुखद आश्चर्य हुआ कि यह तो उसकी बाँहों में बैठे प्रभु गणेश का ही हाथ था।
उसे लगा कि प्रभु इस अंतिम विदा की बेला में भावुक हो रहे हैं। यह सोच कर वह भी अति भावुक हो चला और उसकी आँखें भर आंई।
"गौतम मुझे तुमसे एक प्रश्न पूछना है?"
"क्यों नहीं प्रभु, आज तो मेरे जीवन का सर्वश्रेष्ठ दिन है कि इतने दिनों की पूजा आराधना का फल मुझे मिला है।"
"नदी के जिस जल में तुम मेरा विसर्जन करना चाहते हो, क्या तुम इस जल को इस योग्य समझते हो?"
बप्पा के प्रश्न से गौतम का मन आत्म ग्लानि से भर गया।
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी।
आ. भाई तेजवीर जी, प्रदूषण को लेकर सटीक कथा हुई है । हार्दिक बधाई ।
हार्दिक आभार आदरणीय डॉ प्राची सिंह जी।
हार्दिक आभार आदरणीय समर कबीर साहब जी। आदाब।
हार्दिक आभार आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी।
हार्दिक आभार आदरणीय केवल प्रसाद "सत्यम" जी।
जनाब तेजवीर सिंह जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
सचमुच जल स्रोतों के प्रदूषण की स्थिति चिंताजनक है
लघुकथा अपना सन्देश देने में सफल है
बधाई
गजब, आ० तेजवीर जी , बहुत करीने से नदी प्रदूषण पर आपने सवाल उठाया है ? आपकू बधाई ई\
आ. तेजवीर जी, आपने बहुत ही सुंदर और सटीक चित्र खींचा है. बहुत बहुत बधाई/ फिर भी संक्षिप्तता में अभी भी कुछ करना शेष रहा गया है. शुभ शुभ
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