जैसे ही छोटू के रोने की आवाज मालती के कानों में पड़ी, वह उठकर भागी. दूसरे कमरे के उसके बिस्तर पर लेटे छोटू की नींद खुल गयी थी, शायद उसने नैप्पी भी गीला कर दिया था.
"अले ले, जग गया मेरा राजा बेटा, भुक्खू लगी है क्या?, मालती ने उसे उठाकर प्यार करना शुरू किया और उसे लाड़ करती हुई ड्राइंग रूम में आ गयी.
ड्राइंग रूम में एक कोने में वह बैठा हुआ अखबार पढ़ रहा था, मालती और छोटू के मिले जुले स्वर से उसकी तन्द्रा भंग हुई. उसके चेहरे पर भी उनको देखकर मुस्कराहट आ गयी. वह उठकर छोटू को लेने ही जा रहा था कि उसकी निगाह छोटी सी कुर्सी पर बैठे बड़े बेटे रोहन पर पड़ी. रोहन का चेहरा तना हुआ था और वह चाह कर भी कुछ बोल नहीं पा रहा था. लेकिन उसके हाव भाव सब कुछ बयां कर रहे थे.
बचपन से ही मंद बुद्धि और बोल सकने में असमर्थ रोहन का वह दोनों यथासंभव ख्याल रखते और छोटू के जन्म के पहले तो मालती के लिए वही सब कुछ था. लेकिन जब से छोटू पैदा हुआ था, मालती चाहकर भी उसे वह समय नहीं दे पा रही थी जो उसे पहले मिलता था. उसने पिछले कुछ समय से यह महसूस किया था और एकाध बार मालती से कहा भी लेकिन उसने हंसकर टाल दिया.
"तुम्हें बेकार का वहम हो रहा है, देखते नहीं हो कि रोहन भी छोटू के साथ कितना खेलता है", मालती शायद वह नहीं देख पा रही थी जो उसे दिखाई दे रहा था.
उसने एक बार मालती की तरफ देखा, वह अभी भी छोटू को हवा में उछाल रही थी. दूसरी तरफ रोहन के चेहरे पर तनाव बढ़ता जा रहा था, उसने कुछ सोचा और उसके कदम रोहन की तरफ बढ़ गए.
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
इस उत्साह बढ़ाने वाली टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार आ समर कबीर साहब
इस उत्साह बढ़ाने वाली टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार आ बृजेश कुमार 'ब्रज' साहब
शानदार कथा रचना है आदरणीय..भावों से परिपूर्ण...
जनाब विनय कुमार जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
इस उत्साह बढ़ाने वाली टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार आ सुशील सरना साहब
इस उत्साह बढ़ाने वाली टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार आ तेज वीर सिंह साहब
प्रस्तुत लघुकथा में आपने बाल मानसिकता की अव्यक्त अभिव्यक्ति को आपने बहुत ही संजीदगी से चित्रित किया है। दिल से बधाई आदरणीय विनय कुमार जी।
हार्दिक बधाई विनय कुमार जी।बाल मनोविज्ञान की गहराई और गंभीरता को वर्णित करती बेहतरीन लघुकथा।
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