दो क्षणिकाएँ ...
पुष्प
गिर पड़े रुष्ट होकर
केशों से
शायद अभिसार
अधूरे रहे
रात में
........................
मौन को चीरता रहा
अंतस का हाहाकार
कर गयी
मौन पलों का शृंगार
वो लजीली सी
हार
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी आपकी ऊर्जावान प्रशंसा से सृजन धन्य हुआ , तहे दिल से शुक्रिया।
आद0 सुशील सरना जी सादर अभिवादन। बड़ी सी बात को चंद पंक्तियों में कहना कोई आपसे सीखें। ग़ज़ज़्ब। बधाई स्वीकार कीजिये। सादर
आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब , सृजन पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का तहे दिल से शुक्रिया।
जनाब सुशील सरना जी आदाब,अच्छी क्षणिकाएँ लिखीं आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय Dr. Vijai Shanker जी सृजन आपकी प्रेरक प्रतिक्रिया का दिल से आभारी है।
बहुत खूब , क्षणिकाएं , बधाई , आदरणीय सुशील सरना जी , सादर।
आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी सृजन आपकी प्रेरक प्रतिक्रिया का दिल से आभारी है।
आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर क्षणिकाएँ हुई हैं । हार्दिख बधाई ।
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