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क्षणिकाएँ --6 -डॉo विजय शकर

इतने कांटे
कि उनसे बचते-बचते
गुलाब क्या
हर फूल से हम
दूर हो गए .......... 1.

पेड़ कहीं जाते नहीं
फल पक जाएँ
तो रुक पाते नहीं....... 2 .

तुम क्या गये
मेरी तन्हाई
भी ले गये .......…… 3.

और यह भी , यूँ ही,

उनका लिखा शेर खूब चला, खूब चला, खूब चला,
चलना ही था , ट्रक के पीछे जो लिखा था ॥

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Dr. Vijai Shanker on June 11, 2015 at 3:27pm

आदरणीय केवल प्रसाद जी , क्षणिकाएँ आपको अच्छी लगीं , लिखना सार्थक हुआ.  आपकी प्रशस्ति के लिए ह्रदय से बहुत बहुत आभार, धन्यवाद, सादर. 

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 11, 2015 at 3:25pm

आदरणीय समर कबीर साहब, नमस्कार , आपकी प्रशस्ति के लिए ह्रदय से बहुत बहुत आभार, धन्यवाद, सादर. 

Comment by shree suneel on June 11, 2015 at 12:48pm
इतने कांटे
कि उनसे बचते-बचते
गुलाब क्या
हर फूल से हम
दूर हो गए .......... क्या बात!
आप की प्रस्तुति अच्छी लगी आदरणीय विजय शंकर सर जी. बधाइयां आपको.
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 11, 2015 at 9:17am

आ0  विजय शंकर भाई जी,  अतीव सुंदर क्षणिकाएँ मुग्ध कर रही हैं. बधाई. स्वीकारे. सादर

Comment by vijay nikore on June 11, 2015 at 1:28am

 आपकी क्षणिकाएँ पढ़ कर आनन्द आया। बधाई, विजय जी।

Comment by Samar kabeer on June 10, 2015 at 11:27pm
आली जनाब डॉ विजय शंकर जी,आदाब,बहुत पसंद आई आपकी क्षणिकाएँ ,दिल से दाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।
Comment by Dr. Vijai Shanker on June 10, 2015 at 9:16pm

आदरणीय नरेंद्र सिंह चौहान  जी, आपको क्षणिकाएँ पसंद आईं  , आपका बहुत बहुत आभार, एवं धन्यवाद, सादर।  

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 10, 2015 at 9:14pm

आदरणीय डॉo गोपाल नारायण जी, आपको क्षणिकाएँ पसंद आईं  , आपका बहुत बहुत आभार, एवं धन्यवाद, सादर।  

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 10, 2015 at 9:12pm

आदरणीय सुनील प्रसाद जी, आपको क्षणिकाएँ पसंद आइन , आभार, एवं धन्यवाद, सादर।  

Comment by narendrasinh chauhan on June 10, 2015 at 2:40pm

अति सुन्दर सर

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