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दोहा- 9 (प्रेम पियूष)

पूर्ण चाँदनी रात है, अगणित तारे संग !
अब विलम्ब क्यों है प्रिये , छेड़ें प्रेम प्रसंग!!

कनक बदन पर कंचुकी ,सुन्दर रूप अनूप !
वाणी में माधुर्य ज्यों , सरदी में प्रिय धूप !!

अद्भुत क्षण मेरे लिए,जब आये मनमीत !
ह्रदय बना वीणा सरस ,गाता है मन गीत !!

प्रेम न देखे जाति को ,सच कहता हूँ यार !
यह तो सुमन सुगंध सम ,इसका सहज प्रसार !!

विरह सिंधु में डूबता ,खोजे मिले न राह !
विकल हुआ अब ताकता,मन का बंदरगाह !!

प्रेम सुधाकर हैं उदित ,छेड़ सुहाने तान !
अधरों पर फिर से खिली ,वही मधुर मुस्कान !!


************************************************
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by Dr.Prachi Singh on November 26, 2013 at 11:13am

शालीन शृंगार का सुन्दर निर्वहन 

शब्द कथ्य भाव शिल्प सब पर सुन्दर लगे दोहे 

बहुत बहुत बधाई 

शर्दी..इस शब्द को सही कर लें 

Comment by ram shiromani pathak on November 23, 2013 at 12:36am

बहुत बहुत आभार आदरणीय  अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव  जी ... सादर 

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on November 23, 2013 at 12:18am

एक से बढ़कर एक भावपूर्ण दोहे । बधाई राम भाई।

Comment by ram shiromani pathak on November 22, 2013 at 10:43pm

बहुत बहुत आभार आदरणीया सरिता  जी ... सादर 

Comment by ram shiromani pathak on November 22, 2013 at 10:42pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय रमेश जी ... सादर 

Comment by ram shiromani pathak on November 22, 2013 at 10:41pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय विजय मिश्रा जी ... सादर 

Comment by रमेश कुमार चौहान on November 22, 2013 at 8:01pm

वाह पाठकजी वाह, बहुत ही सुंदर दोहे , इस प्रस्तुति पर बधाई

Comment by Sarita Bhatia on November 22, 2013 at 5:48pm

प्रेम से सराबोर दोहे भाई बधाई 

Comment by विजय मिश्र on November 22, 2013 at 5:15pm
राम शिरोमणि जी , जबरदस्त झटका है प्रेम का , भाव वर्षा में इतने भीगे की पूर्ण चाँदनी रात में अगणित तारे भी छिटका दिए |भाई बधाई ,दोहे मदमत्त हैं |
Comment by ram shiromani pathak on November 22, 2013 at 3:01pm
बहुत बहुत आभार आदरणीय भाई जितेन्द्र 'गीत' जी। ।सादर/

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