दिल ए नादान से हरगिज़ न संभाली जाए
आरजू ऐसी कोई दिल में न पाली जाए
जान मांगी है तो अपनी भी यही कोशिश है
ऐ मेरे दोस्त तेरी बात न खाली जाए
अपने हाथों के करिश्मे पे भरोसा करके
अपनी सोई हुई तक़दीर जगा ली जाए
आज फिर छत पे मेरा चाँद नज़र आया है
क्यूँ न फिर आज चलो ईद मना ली जाए
घर में दीवार उठी है तो कोई बात नहीं
ऐसा करते हैं कि छत अपनी मिला ली जाए
जब किसी और के बस में नहीं है खुश रखना
खुद ही खुश रहने की तरकीब निकाली जाए
जब किसी को भी गुनाहों की सज़ा देनी हो
इक नज़र अपने गुनाहों पे भी डाली जाए
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
मोहतरम अफ़रोज़ साहब आपका बहुत बहुत शुक्रिया। आप लोगों की बातों का ख्याल रखूंगा।
aap log yun hi sarparasti karte rahenge to behtar tareeqe se ghazal kah sakoonga...
janaab mohaammad arif sahab... janaab samar kabeer sahab... aapki hauslaafzaai ke liye bahut bahut shukriya... aur islaah ke liye bhi bahut bahut shukriya...
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