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हिंदी छन्द : त्रिभंगी / संजीव सलिल

त्रिभंगी सलिला:
ऋतुराज मनोहर...
संजीव 'सलिल'
*
ऋतुराज मनोहर, प्रीत धरोहर, प्रकृति हँसी, बहु पुष्प खिले.
पंछी मिल झूमे, नभ को चूमे, कलरव कर भुज भेंट मिले..
लहरों से लहरें, मिलकर सिहरें, बिसरा शिकवे भुला गिले.
पंकज लख भँवरे, सजकर सँवरे, संयम के दृढ़ किले हिले..
*
ऋतुराज मनोहर, स्नेह सरोवर, कुसुम कली मकरंदमयी.
बौराये बौरा, निरखें गौरा, सर्प-सर्पिणी, प्रीत नयी..
सुरसरि सम पावन, जन मन भावन, बासंती नव कथा जयी.
दस दिशा तरंगित, भू-नभ कंपित, प्रणय प्रतीति न 'सलिल' गयी..
***

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Comment by बृजेश नीरज on February 18, 2013 at 7:31pm

बहुत सुन्दर रचना

Comment by Abhinav Arun on February 18, 2013 at 6:44pm
बसन्त का अद्भुत वर्णन , अतीव सुन्दर ,नमन आचार्यश्रेष्ठ !
Comment by mrs manjari pandey on February 15, 2013 at 10:25am

आदरणीय ,  संजीव सलिल जी वासन्तिक  सौन्दर्य की अद्भुत छठा बाँधी है आपने। आनंद आ गया।

Comment by upasna siag on February 14, 2013 at 6:36pm

बहुत सुन्दर ......

Comment by वेदिका on February 14, 2013 at 5:23pm

प्रत्येक कोण से रचना सुंदर है मनमोहक है।
शुभकामनायें!!

(त्रिभंगी सलिला क्या होता है?)


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 14, 2013 at 2:37pm

आदरणीय सलिल जी वसंत ऋतु के सौन्दर्य का त्रिभंगी छंद में इतना सुंदर वर्णन पढ़ कर मन झूम उठा हार्दिक बधाई आपको 

Comment by vijay nikore on February 14, 2013 at 9:33am

त्रिभंगी छंद पर यह रचना पढ़ कर आनंद आ गया।

बधाई।

विजय निकोर


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 13, 2013 at 9:16pm

परम आदरणीय आचार्य जी, आपकी रचना पढ़ने के बाद मन मुग्ध है , शिल्प और भाव , वाह वाह, क्या कहने, शब्दों को जिस तारतम्य में आपने समायोजित किया है वो काबिले तारीफ़ है, बहुत बहुत बधाई स्वीकारें । 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 13, 2013 at 8:32pm

त्रिभंगी छंद पर बसंत ऋतु के लावण्य के मानक स्थापित करती सुन्दर रचना के लिए बहुत बहुत बधाई आदरणीय संजीव जी. 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 13, 2013 at 12:32pm
 मन मुग्ध कर दिया आपकी मधुर काव्य रचना नने , दिल से ढेरों बधाइयां स्वीकारे आदरणीय संजीव सलिल जी 

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