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सरकार - इनकी उनकी--- डॉo विजय शंकर

लोगों की , लोगों से , लोगों के लिए
सरकार होती है ,
हमने इनकी , उनकी ,
हर इनकी , हर उनकी ,
सरकार बना दी , लोगों से छीन कर ।
हालात ये हैं कि अब हर एक
ठगा सा लगता है,
दूसरे की हो सरकार तो
डरा डरा सा लगता है ॥
खुद अपनी हो सरकार तो
ज्यादा ही अड़ा अड़ा सा लगता है ॥
अपनी स्वतंत्रता , अपना राज , अपनी सरकार ,
सब कुछ अपना अपना है , दूजे सब बेकार ॥

मौलिक एवं अप्रकाशित
डॉo विजय शंकर

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 30, 2015 at 1:05am

कम शब्दों में अच्छी  कविता .. सुन्दर कविता... बड़ी कविता. कविता का मूल भाव जबरदस्त तरीके से उभर के आया है. दिल से बधाई निवेदित है सर. आदरणीय डॉ विजय शंकर सर बेहतरीन रचना हुई है. 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 29, 2015 at 8:56pm

कोई छलता है 

कोई छला जाता है

यही है भूत, वर्तमान और भविष्य..

आदरणीय डॉ विजय शंकर जी, बहुत ही सुन्दर कविता हुई है, बहुत बहुत बधाई.

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 29, 2015 at 8:44pm
आदरणीय श्याम मठपाल जी , रचना को स्वीकृति देने एवं प्रशस्ति के लिए ह्रदय से आभार, बहुत बहुत धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on January 29, 2015 at 8:41pm
आदरणीय गुमनाम पिथौरागढ़ी जी , रचना को स्वीकृति देने के लिए आभार, बहुत बहुत धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on January 29, 2015 at 8:39pm
आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी , रचना को स्वीकृति प्रदान के लिए आभार, प्रशस्ति और बधाई के लिए ह्रदय से बहुत बहुत धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on January 29, 2015 at 8:36pm
आदरणीय वीरेंद्र मेहता जी , रचना की स्वीकृति के लिए आभार, प्रशस्ति के लिए बहुत बहुत धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on January 29, 2015 at 8:31pm
आदरणीय विजय जी , आभार, बहुत बहुत धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on January 29, 2015 at 8:29pm
आदरणीय गोपाल नारायण जी , आभार, उत्साह बढ़ाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on January 29, 2015 at 8:27pm
प्रिय जीतेन्द्र जी , आभार, प्रायः सारे सच बहुत सरल और बहुत छोटे होते हैं, हम उनसे बचने के लिए उन्हें जटिल और विवादास्पद बना देते हैं, बहुत बहुत धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on January 29, 2015 at 8:24pm
बहुत सही कहा आपने , अपनी मान्यता का शासन हो और अपनी बात चले, आभार, आदरणीय सोमेश कुमार जी, धन्यवाद , सादर।

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