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सच में आज की रफ़्तार में हम क्या क्या खो रहे हैं ,ये हमें खुद नहीं पता ,इस सरल सी लगने वाली रचना के आज के कॉन्टेक्स्ट में कई गहरे मायने हैं , बधाई आपको आदरणीय
aa0 Vijay sir
इश्क न जाने कहाँ खो गया
अफेयर का ज़माना हो गया ,
चलते हैं ,
बदलते हैं ,
कितने फेयर होते हैं ,
जफ़ा को अब कोई रोता नहीं ,
जिक्रे वफ़ा अब कहीं होता नहीं।----- बहुत सच कहा खूब कहा
आदरणीय विजय भाई साहिब वर्तमान जज्बातों की अहमियत को चित्रित करती इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई। आदरणीय वफ़ा और जफ़ा तो मुहब्बत के खूबसूरत पहलू हैं जब मुहब्बत ही दिखावा मात्र है तो वफ़ा और जफ़ा का वज़ूद कहाँ होगा।
विजय भाई ,जीवन के यथार्थ को छूती सुंदर रचना ,बधाई I
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