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विजय सर ! आपके कथन वैचित्र्य का मैं हमेशा कायल रहा हूँ . बहुत खूब .
आदरणीय डॉ विजय शंकर सर, गहन वैचारिक प्रस्तुतियां आपकी विशेषता बन गई है. इस शानदार प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
इन जबरदस्त पंक्तियों के लिए विशेष बधाई-
//भटक गए हो
तो लौट लो , वहीँ
जहां से भटके थे ,
लोग इन्तजार करते मिलेंगे।
खो गए हो खुद तो
घर लौट लो ,
घरवाले प्रतीक्षा करते मिलेंगे।
उठो , खुद को पहचानो ,
सोये हो , तो जागो।।//
भटक गए हो
तो लौट लो , वहीँ
जहां से भटके थे ,
लोग इन्तजार करते मिलेंगे।
खो गए हो खुद तो
घर लौट लो ,/// सुन्दर प्रभावशाली रचना हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय
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