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पाओगे वही जो चाहोगे -- डॉo विजय शंकर

सच बोलू ,
सुन पाओगे ?
सत्य-मार्ग है ,
चल पाओगे ?
विजय-पथ है ,
लड़ पाओगे ?
प्रेम है ,
ले पाओगे ?
मित्रता है ,
निभा पाओगे ?
थोड़ा मीठा है ,
खा लोगे ?
नमक तेज है ,
खा लोगे ?
मुद्दा है ,
सुलझाओगे ?
या भुनाओगे ?
हर समस्या का
हल है ,
हल चाहोगे ?
बात ये है कि
पाओगे वही
जो चाहोगे।


मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Dr. Vijai Shanker on October 7, 2017 at 9:51am
आदरणीय महेंद्र कुमार जी , आपने रचना को बहुत मान दिया और पूर्ण मनोयोग से पढ़ा। आपका सुझाव अच्छा है , धन्यवाद और ह्रदय से आभार , सादर।
Comment by Mahendra Kumar on October 6, 2017 at 9:34pm

आ. डॉ. विजय शंकर जी, बेहद उम्दा और प्रेरणादायी कविता कही है आपने. मेरी तरफ़ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. 

मुद्दा है ,
सुलझाओगे ?
या उसको

भुनाओगे ?
हर समस्या का
हल है ,
हल चाहोगे ?
बात ये है कि
वही पाओगे 
जो चाहोगे।

देख लीजिएगा. सादर.

Comment by Dr. Vijai Shanker on October 4, 2017 at 8:07am
आदरणीय समर कबीर साहब , नमस्कार , रचना को स्वीकृति प्रदान कर आपने उत्साह बढ़ाया , आभार। आपकी बधाई के लिए हार्दिक धन्यवाद।
टंकण त्रुटि पर ध्यानाकर्षित करने हेतु भी आभार , सादर।
Comment by Samar kabeer on October 3, 2017 at 12:27pm
आली जनाब डॉ.विजय शंकर जी आदाब,आपके सवालात के पीछे छुपे तंज़ वो सब बयाँ कर रहे हैं जो हर आदमी की फितरत है, बहुत ही ख़ूबसूरत अंदाज़ में आपने हक़ीक़त बयान कर दी,और अंत में 'बात ये है कि
पाओगे वही
जो चाहोगे'
ने सोने पर सुहागा कर दिया,इस बहतरीन रचना के लिए दिल से ढेरों बधाई स्वीकार करें ।
पहली पंक्ति 'सच बोलू' को "सच बोलूँ"करलें,टंकण त्रुटि है शायद ।
Comment by Dr. Vijai Shanker on October 3, 2017 at 9:25am
आदरणीय अफरोज सहर जी , आपकी उपस्थिति एवं रचना को मान देने के लिए आभार एवं धन्यवाद , सादर।
Comment by Afroz 'sahr' on October 2, 2017 at 9:50am
आदरणीय विजय शंकर जी सुंदर रचना के लिए सुंदर सी बधाई आपको।
Comment by Dr. Vijai Shanker on October 2, 2017 at 5:57am
आदरणीय डॉo आशुतोष मिश्रा जी , आपका ह्रदय से आभार , रचना को मान देने के लिए , आपकी नज़र भी सही जगह पर पड़ी। धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on October 2, 2017 at 5:56am
आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी , आपने रचना को पसंद किया , उसे मान मिला। रचना स्वयं को अभिव्यक्त कर सकी। आपका ह्रदय से आभार एवं धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 30, 2017 at 10:04pm
आदरणीय विजय सर ये रचना तो कमाल की है सच है हर समाधान है लेकिन आप क्या चाहते ही सब इसपर निर्भर करता है उस रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर
Comment by Mohammed Arif on September 30, 2017 at 8:48pm
आदरणीय विजय शंकर जी आदाब, फिर धमाकेदार संक्षिप्त किंतु सारगर्भित कविता । इस छोटी-सी कथा में आपने सबकुछ कह दिया । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

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