For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कलयुग हैं , कलियुगी होना चाहिए ---डॉo विजय शंकर

आदमी को समय के साथ चलना चाहिए
कलयुग में हैं तो कलियुगी होना चाहिये ॥
चालाकियां होश्यारियां हुनर सब अपने लिए हैं
काम दूसरे का हो तो मासूम बन जाना चाहिए ॥
अपने सब काम क़ानून को ताख पर रख कर कर लें
दूसरे को सारे नियम क़ानून बताना चाहिए ॥
बात किसी की कभी काटनी नहीं चाहिए
काम किसी का भी हो करना नहीं चाहिए ॥
कहना किसी का भी हो मोड़ना नहीं चाहिए
तिनका किसी के लिए भी तोड़ना नही चाहिए ॥
आदमी को समय के साथ साथ चलना चाहिए
कलयुग में हैं तो घोर कलियुगी होना चाहये ॥
हमें अपने युग का सम्मान का करना चाहिए
कलयुग में हैं तो घोर कलियुगी होना चाहिए॥

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 646

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 27, 2015 at 6:44pm
आदरणीय राजेश कुमारी जी , रचना आपको पसंद आई , आभार आपका। सोचने की बात यह यह है कि यह कलयुग या घोर कलयुग सिर्फ और सिर्फ हमारे इर्द - गिर्द है , बाक़ी दुनियाँ इससे अछूती और बेखबर है। यह हमारी और सिर्फ हमारी कल्पना है और हमारे पास ही इसका कोई समाधान नहीं है।या यूँ कहें कि अपनी समस्याओं को हम कलयुग के काल - खण्ड में डाल कर उनकें समाधान से पलायन कर रहे हैं. वास्तव में कलयुग तो हमारी धारणा में है। दुनियाँमें लोग ऐसी धारणाओं को अपने पास फटकने नहीं देते। रचना को मान देने लिए आपको धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on August 27, 2015 at 6:38pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी , रचना आपको पसंद आई , आभार आपका। कलयुग में जीने का ढंग मैंने बताया नहीं , मैंने इसे ऐसे ही देखा और पाया है। पर आश्चर्य तो यह है कि यह कलयुग सिर्फ और सिर्फ हमारे इर्द - गिर्द है , बाक़ी दुनियाँ इससे अछूती और बेखबर है। यह हमारी और सिर्फ हमारी कल्पना है और हमारे पास इसका कोई समाधान नहीं है।या यूँ कहें कि अपनी समस्याओं को हम कलयुग के काल - खण्ड में डाल कर उनकें समाधान से पलायन कर रहे हैं. वास्तव में कलयुग तो हमारी धारणा में है। रचना को मान देने लिए आपको धन्यवाद , सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 27, 2015 at 10:50am

शानदार कटाक्ष किया है प्रस्तुति में ..ये वक़्त तो लगभग आ चूका है घोर कलियुग में क्या होगा रब जाने |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 27, 2015 at 10:01am

आदरणीय विजय शंकर भी , कलियुगी दुनिया मे जीने ढंग बहुत सुन्दर बताया आपने । कविता के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 26, 2015 at 6:18pm
आदरणीय रवि शुक्ला जी , बहुत बहुत धन्यवाद , सादर।
Comment by Ravi Shukla on August 26, 2015 at 2:15pm

आदरणीय डा. विजय शंकर जी प्रस्‍तति के लिये बधाई स्‍वीकार करें ।

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 25, 2015 at 10:33am
आदरणीय डॉO गोपाल नारायण जी , रचना की स्वीकृति के लिए आभार एवं धन्यवाद, सादर।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 25, 2015 at 10:15am

आ० आज के चरित्र पर रचना तीखा व्यंग करती है .

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 25, 2015 at 9:32am
आदरणीय सुश्री कान्ता रॉय जी , आपको कविता पसंद आई, आपका बहुत बहुत आभार। व्यंग है, हमेशा समय के साथ न तो चलना चाहिए , न हमेशा चलने वाले हमेशा ही सफल होते हैं. मछलियाँ सदैव बहाव के प्रतिकूल चलती हैं, यही उनके जीवित होने का प्रमाण होता है।
…… सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on August 25, 2015 at 9:21am
आदरणीय सुश्री प्रतिभा पांडे जी , आपने सही कहा , किसी न किसी रूप में हम समय के साथ चलते हैं , समझौता कर ही लेते हैं. समय प्रतिकूल हो तो ज़रा भी प्रवाह के प्रतिकूल चलने का प्रयास नहीं करते हैं. जब कि समय की मांग थोड़ा प्रतिकूल चलने की ही होती हैं। कभी चल कर तो देखें.
…… जैसे आजकल सोशल मीडिआ पर एक निवेदन यह आ रहा है कि ०१ सितम्बर १५ से १० सितम्बर १५ , यानी मात्र दस दिन प्याज न खरीदें, बस। एक बार एहसास तो कराएं कि हम इतने लाचार नहीं हैं कि तुम किसी भी दाम पर प्याज बेचो , हम खरीदते ही रहेंगे. कुछ फैसले बड़े साधारण होते हैं , पर आँखें खोल देते हैं। एक प्रयास है, कर कर देखें , कुछ असर करता है, खेल ही सही। ....... सफल , तो आगे भी काम आयेगा. ये हर साल की नौटंकी पर लगाम तो लगेगी।
फिलहाल तो आपका अाभार एवं धन्यवाद, सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"आदरणीय रामबली जी बहुत ही उत्तम और सार्थक कुंडलिया का सृजन हुआ है ।हार्दिक बधाई सर"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
" जी ! सही कहा है आपने. सादर प्रणाम. "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, एक ही छंद में चित्र उभर कर शाब्दिक हुआ है। शिल्प और भाव का सुंदर संयोजन हुआ है।…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य, आदरणीय अशोक भाई साहब।  31 वर्णों की व्यवस्था और पदांत का लघु-गुरू होना मनहरण की…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, आपने रचना संशोधित कर पुनः पोस्ट की है, किन्तु आपने घनाक्षरी की…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   नन्हें-नन्हें बच्चों के न हाथों में किताब और, पीठ पर शाला वाले, झोले का न भार…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति व स्नेहाशीष के लिए आभार। जल्दबाजी में त्रुटिपूर्ण…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में सारस्वत सहभागिता के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी। शीत ऋतु की सुंदर…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"शीत लहर ही चहुँदिश दिखती, है हुई तपन अतीत यहाँ।यौवन  जैसी  ठिठुरन  लेकर, आन …"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service