बहुत कुछ , बहुत हास्यास्पद है ,
फिर भी किसी को हंसी आती नहीं।
बहुत कुछ , बहुत दुखदायी है ,
फिर भी आंसू किसी को आते नहीं।… 1.
बाज़ार भी अजीब जगह है
जहां आप शाहंशाह होकर भी
रोज बिक तो सकते हैं , पर एक
दिन को भी अपनी पूरी हुकूमत में ,
पूरा बाज़ार खरीद नहीं सकते ………. 2 .
बहुत शिकायतें हैं हवा से
कि बुझा देती हैं चिरागों को ,
चलो एक चिराग ही बिना
हवा के जला के दिखा दो। ……….. 3 .
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी, बहुत सही प्रतिक्रया , आदमी अपना वजूद खो रहा है , एक आंकड़ा मात्र बन कर रह गया है , प्रगति और विकास दोनों ही उससे आगे निकल गए और वह पीछे अपना अस्तित्व खोज रहा है। आनेवाले समय में मशीने उसका होना न होना बराबर कर देगीं। दूसरी ओर बाज़ार आदमी से अधिक महत्वपूर्ण होता जा रहा है और हम हैं कि प्रकृति को छोड़ कर कृत्रिम ढंग से जीने को सुख मानते जा रहे हैं।
आपकी उपस्थिति और सटीक प्रतिक्रया के लिए आभार एवं धन्यवाद , सादर।
आदरणीय विजय शंकर सर।
आज संवेदनाओं का एहसास मात्र स्वयं के लिए सिमट कर रह गया है । इंसानियत शुष्क होते जा रही है। वर्तमान स्तिथि का सजीव चित्रण प्रस्तुत करने के लिए बधाई स्वीकार करें।
आदरणीय विजय शंकर जी आदाब,
व्यक्ति अपना वजूद खोता जा रहा है । बेबसी, लाचारी में जीने को अभिशप्त है । दीनहीन, चरित्रहीन और आवारा मानसिकता का शिकार है । तनाव और अवसाद जीवन के अंग बनते जा रहे हैं । उसे जीना है क्योंकि जीने की मज़बूरी है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
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