डाक्टर
मरीजों की भीड़ को-
डाक्टर झट-पट ऐसे निपटाता रहा,
बगैर गर्दन उठाये-
मरीज का हांल-चाल कुछ सुनता रहा
मरीज दर्द से कराहता रहा-
वह पर्ची पर कलम चलाता रहा
झट पर्ची हाथ में थमा-
अगले मरीज का नाम पुकारता रहा
मुझे यूँ लगा जैसे-
बिना सुने फरियाद ही फैसला लिखता रहा
कराहने की आवाज नहीं-
वह तो मोबाईल पर बतियाता रहा
डाक्टर भगवान होता है-
हम यही सुनते औ विश्वास करते रहे
बिना सुने फरियाद वो-
इलाज करता रहा, हम यकीं करते रहे
जज औ डाक्टर पर सब हमें-
यकीं करने की मजबूरी बताते रहे,
होवें वहीँ जो राम रची राखा-
बोल मन में तस्सली दिलाते रहे |
-- लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला,जयपुर -
Comment
सौरभजी, हार्दिक धन्यवाद एवं आभार
आपके सुझाव गौर करने लायक है,
रचना कंप्यूटर पर हाथो हाथ लिखने
के कारण अनुभव के अभाव मे काव्यात्मकता
का आप जैसे कवियों कि आँखो मे ख़टकेगी,
इसके लिए मुझे प्रयास करना होगा | सुझाव के
लिए धन्यवाद |
जिनके हाथों में व्यक्ति की व्याधियाँ मिटाने का जिम्मा है वह इस तरह भी लापरवाह हो सकता है.
सीधी-सादी भाषा में तथ्यपरक रचना. बहुत अच्छे !
वैसे रचनाधर्मिता रचना में थोड़ा काव्य-प्रवाह मांगती है.
हार्दिक शु्भेच्छाएँ.
Thanks to Avinashji and Kushwahaji for the coments
bahut khoob लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला ji
sundar prastuti. badhai.
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